बाढ़
का दृश्य
Badh ka Drishya
मनुष्य सदा से प्रकृति से संघर्ष करता आया है।
वैज्ञानिक उन्नति के पश्चात भी प्रकृति सदा अजेय रही है। कवि का हृदय भले ही
पुकारता ही प्रलय, मेघ भूचाल देख मुझको शरमाए। परंतु सत्य तो यह
है कि पंचतत्वों की शयित के समश्च मनुष्य बहुत बौना प्रतीत होता है। मनुष्य ने भले
ही फैज्ञानिक तरक्की कर आकाश से पाताल तक को भाप डाला हो परंतु प्रकृति जब अपने
विध्वंसकारी रूप में उसके सम्मुख आती है तो मनुष्य की सभी शक्तियाँ सिमटकर नगण्य
रह जाती है।
आँधी, तूफान, बाब, और भूचाल आदि प्रकृति के ये उग्र स्वरूप जिनसे
मानव हृदय दहल उठता है। इनके क्रोध में मानव का सब कुछ जलकर स्वाहा हो जाता है और
यह असहाय-सा अपने भाग्य को कोसता रह जाता है। बाढ़ का प्रकोप जन, धन, पशु, फसल, घर
और खेत सबको अनंत जल-राशि में समाता चला जाता है।
भारत में अनेक नदियाँ देशभर में प्रवाहित होती
हैं। वर्षा काल आते. ही सूखी नदियों में भी उफान आ जाता है। उनका सौंदर्य अपनी
सीमाएँ लांघ
जाता है तथा कल-कल बहने वाली नदियाँ बीभत्स रूप धारण कर फुफकारते नाग-सी जन-जीवन
को डस लेने वाली प्रतीत होने लगती हैं।
नदियों की इस विनाश लीला को मैंने स्वयं अनुभव
किया। मैं गर्मी की छुटियों में अपनी मौसी जी के घर उत्तर प्रदेश गया हुआ था।
छुट्टियाँ समाप्त होने की थी तथा मानसून समय से पहले ही अपना रंग दिखा रहा। था।
प्रतिदिन समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलता था कि यमुना का जलस्तर बढ़ता जा रहा
है। एक दिन, रात को हम सो रहे थे तभी चारों ओर से 'बचाओ-बचाओ' की
आवाजें गूंजने लगीं। सरकारी तौर पर भी घोषणाएं होने लगी। यमुना का जल स्तर बढ़ गया
था तथा पानी आसपास के क्षेत्र में तेजी से फैलता जा रहा था।
देखते ही देखते यमुना ने गाँवभर को अपनी चपेट
में ले लिया। चारों तरफ जल ही जल था। पानी अत्यंत वेग से बह रहा था। पूरी सुबह सामान
उठाते-उठाते बीत गई।
हम तिमंजिले घर की छत पर थे। जो सामान ऊपर की
मंजिल में लाया जा सकता था, ले आए। धीरे-धीरे पहली मंजिल पानी में डूब गई
थी। गाँव में कुछ ही पक्के घर थे। कच्चे घर सब पानी में बह गए थे। पानी के तेज वेग
में किस-किसका घर बह गया, कौन-सा घर टूट गया-कुछ पता ही न चलता था। चारों
तरफ़ तेज़ बहता पानी दिखाई पड़ रहा था। गाँव के एक टीले पर गठरी बाँधे कुछ लोग
बैठे थे। कुछ लोग ऊँचे घरों की छत पर लदे थे।
पानी में घरों की खपरैल, घास-फूस, पेड़ों
की शाखाएँ तथा घरों का सामान बहा जा रहा था। स्त्रियाँ रो-पीट रही थीं। बाद में
पता चला कि इस विनाशकारी बाढ़ ने कुछ बच्चों व वृधों की जान भी ले ली। सरकारी
कर्मचारी नावों में बैठकर टीले व छतों पर अटके लोगों को उतारउतारकर ले जाने लगे।
भूख और प्यास से लोग बेहाल थे। छोटे बच्चों ने रो-रोकर बुरा हाल कर लिया था। यमुना
का यह नरसंहार देखकर हृदय दहल उठा।
बाढ़ ने समस्त क्षेत्र को शहर से काटकर अलग कर
दिया था। सरकारी हेलीकॉप्टरों से खाने के पैकेट गिराए गए। अगले दिन पानी का स्तर
धीरे-धीरे कम हो गया। चारों तरफ गंदी कीचड़ दिखाई दे रही थी। यत्र-तत्र मरे हुए
पशुओं की लाशें पड़ी थीं। हरी-भरी फसलें सड़ने लगी। घर का सामान पानी में गल-सड़
गया। चारों तरफ दुर्गंध व्याप्त थी।
बाढ़ के कारण बिजली के खंभे गिर गए थे और पानी
की लाइनें भी क्षतिग्रस्त हो गई थीं। पीने के पानी का भयंकर अकाल था। चारों तरफ
पानी की विनाशलीला का वीभत्स नजारा और बूंद-बूंद पानी का अभाव। पीने के पानी के
टैंकरों पर लोगों की भीड़ टूट पड़ती थी। भीषण बाढ़ ने सड़कों, पुलों, रेल
लाइनों तक को तोड़ डाला। कुएँ बाढ़ के गंदे जल से लबालब भर गए थे। पशुओं के लिए
खाने के चार का अभाव हो सर्वत्र कीचड़, गंदगी व बदबू का साम्राज्य था।
बाढ़ का पानी कुछ दिनों में सूख गया। बाढ़
पीड़ित गाँववासी लोटल अपने घरों की तलाश में आने लगे। गरीब लोगों की दशा देखकर मार
पड़ता था। उनके पास न रहने को घर था, न पहनने को कपडे।। बहुत फसल जिसके सहारे वर्षभर
वे जीवनयापन करते, वह भी बाद में बरबाद हो गई थी। सरकारी कैंप
लगाए गए। जिनमें लोगों के आयाम भोजन व ओषधि की व्यवस्था की गई। अनेक समाजसेवी
संस्थाओं का ग्रामीणों की काफ़ी मदद की। जनसेवकों ने पंद्रह-बीस दिनों में ही गोड
को रहने लायक बना दिया।
हमारे देश में ऐसी भयंकर बाढ़ प्रतिवर्ष आती है
जो नदियों पर बने बाँधों को ढहा देती हैं। वृक्षों, घरों और जीवन
सभी को लीलकर चारों तरफ चीत्कार, दुख-तकलीफ़,
जन-धन की हानि को जन्म देती है।
बाढ़ के विनाशकारी स्वरूप से देशवासियों की
रक्षा करते है। एक विशेष अभियान व जन-चेतना की आवश्यकता है। नीति निर्धारको और
बुद्धिजीवियों को इस दिशा में कुछ सार्थक कदम अवश्य उठाने चाहिए।
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