बाल-मजदूरी की समस्या
Bal Majduri Ki Samasy 

  

बच्चे राष्ट्र की आधारशिला होते हैं और उसका भविष्य भी; किंतु विडंबना तो देखिए, हमारे देश के लगभग आधे बच्चों को न पौष्टिक भोजन उपलब्ध है और न ही शिक्षा के अवसर। बीड़ी, माचिस, पटाखे बनाने जैसे ख़तरनाक काम हों या कालीन बुनने, ढाबों या घरों में बरतन माँजने जैसे कठोर काम, इन मासूमों को पेट की अग्नि शांत करने के लिए स्वयं जलते अंगारों पर चलना होता है। ऐसा नहीं कि बूट पॉलिश करती झुकी आँखों में सपने नहीं पलते, लेकिन उन्हें साकार करने का न तो उन्हें अवकाश है और न ही अवसर। प्रताड़ना और तिरस्कार का जीवन जीते ये बाल-मजदूर सभ्य-समाज के माथे पर कलंक हैं! इसे धोने के लिए सरकारी कानून पर्याप्त नहीं। इसके लिए चाहिए-सामाजिक सरोकार, मानवीय संवेदना। पूरे समाज को समझना होगा कि एक बच्चे की उपेक्षा एक संभावना की उपेक्षा है। एक बीजाणु के वायुरस में बदल जाने, कलियों के अधखिला रह जाने जैसी स्थिति को पैदा करना है। आज का शोषित, कल का शोषक हो सकता है क्योंकि समाज से हम जो पाते हैं, वही तो लौटाते हैं। उनके बालपन के कटु अनुभव उन्हें नशेड़ी, जुआरी या अपराधी बना सकते हैं। हर जागरूक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इस कलंक को मिटाने में सक्रिय सहयोग दे।