पुस्तक मेले में एक दिन
Pustak Mele me Ek Din
समाचार-पत्र में पुस्तक-मेले का विज्ञापन देखा तो लगा जैसे मेरी मन-मुराद पूरी हो गई। कब से मैं अपना निजी पुस्तकालय बनाना चाहती थी, जिसमें देश-विदेश की कालजयी रचनाएँ हों। पुस्तक-मेले में प्रवेश करते ही ऐसा अनुभव हुआ मानो मैं माँ सरस्वती के मंदिर में प्रवेश कर रही हूँ। अन्य मेलों की भाँति यहाँ न तो भीड़-भड़क्का था और न ही शोर-गुल। सभी पुस्तकों के संसार में डूबे थे। हिंदी के अपने सभी प्रिय रचनाकारों-प्रेमचंद, निराला, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, हरिवंश राय बच्चन, दिनकर, मोहन राकेश, कमलेश्वर से लेकर कृष्णा सोबती, सूर्यबाला, नरेंद्र कोहली की रचनाओं के संग्रह मैंने खरीदे। मेले में विदेशी साहित्यकारों की प्रमुख रचनाओं के हिंदी अनुवाद भी मुझे मिल गए। शब्द-कोश, विश्वकोश के बिना पुस्तकालय अधूरा रहता इसलिए वे भी ले लिए। यूँ तो ये सभी ग्रंथ मुझे दुकानों में उपलब्ध हो सकते थे किंतु तब मुझे जगह-जगह की खाक छाननी पड़ती। यहाँ सभी पुस्तकों पर 20 से 25 प्रतिशत तक की छूट तो मानो सोने पे सुहागा थी। मेले में सुबह 11 बजे प्रवेश किया था, बाहर निकली तो शाम के 7 बज चुके थे। इतने घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। पता चलता भी कैसे, अपने स्वप्न-संसार में विचरण जो कर रही थी। प्यास अभी बुझी नहीं थी, किंतु पैर थक चुके थे। किसी और दिन आने का निश्चय कर मैं अपनी अमूल्य निधि लेकर घर की ओर चल पड़ी।
0 Comments