भ्रष्टाचार हटाओ: खुशहाली लाओ 
Bhrashtachar Hatao-Khushali Lao 

भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट आचरण आज ऐसी समस्या का रूप ले चुका है अमरबेल की तरह हर क्षेत्र में अपनी जड़ें जमा चुकी है। भारत की हर समस्या की जड में भ्रष्टाचार है। राजनीति तो आज भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी है। चुनाव में टिकट पाने के लिए जो मारामारी है वो जनता की सेवा करने के लिए नहीं, 'मेवा' पाने के लिए है। एक बार मंत्री-पद पाने का अर्थ है, सात पीढियों के लिए ऐशो-आराम की जिंदगी की गारंटी। कागज पर तो बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनती हैं, लेकिन धरती पर साकार रूप लेने से पहले ही वे नोटों का रूप लेकर नेताओं और अधिकारियों की जेबों में चली जाती हैं। हाल तो यह है कि बाढ़ ही खेत को खा रही है। पुलिस-विभाग हो या आयकर विभाग, रेल-मंत्रालय हो या कोयला-मंत्रालय, जहाँ नजर डालो-घोटाले ही घोटाले हैं। कहा तो यहाँ तक जाता है कि जितना काला-धन यहाँ है या विदेशी बैंकों में है उतने में कम से कम पाँच पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो सकती हैं। शिक्षा, खेल, उद्योग-क्षेत्र कोई हो, योग्यता पर रिश्वत और भाई-भतीजावाद हावी है। भस्मासुर का रूप धर कर सेना-सुरक्षा जैसे अति संवेदनशील विभागों तक में इसकी घुसपैठ हो चुकी है। रक्षा-सौदों की धांधलियाँ गहरी चिंता का विषय है। आम नागरिक त्राहि-त्राहि कर रहा है। कोई फ़ाइल पैसे के धक्के के बिना हिलती नहीं। परिणाम यह हुआ है कि आजादी के सढ़सठ साल बाद भी हम गरीब के गरीब हैं। तब कहा जाता था कि अंग्रेज़ भारत का सारा धन अपने देश ले गए, पर अब क्या हुआ? इस समस्या के निवारण के लिए आंदोलन हुए, संसद में लोकपाल बिल तक पारित हुआ, पर स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली बनी हुई है। स्वार्थ और लोभ पर लगाम कसने के लिए कड़े कानून और उससे भी कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता है, जो तब तक संभव नहीं जब तक कोई दृढ़-इच्छाशक्ति वाला ईमानदार, निष्ठावान, आत्मबली और हिम्मती शीर्ष नेता शासन की बागडोर न संभाले।