देश-प्रेम
Desh Prem
निबंध नंबर :- 01
प्रेम के अनेकानेक रूपों में सबसे श्रेष्ठ, पवित्र और उज्ज्वल है-देश-प्रेम। देश-प्रेम की सूक्ष्मता और गहनता को स्वार्थी या विलासी नहीं समझ सकते। यह देश से मिली सुविधाओं के एवज में दिया जाने वाला भुगतान नहीं है, यह तो नि:स्वार्थ समर्पण भावना है। जिसका लक्ष्य कुछ पाना नहीं मात्र देना होता है। भगत सिंह को देश-प्रेम का प्रतिदान क्या मिला-फाँसी; सुभाष को मौत, गांधी को गोली। लेकिन देश प्रेमी अपने देश की अस्मिता को, उसके गौरव और स्वाभिमान को खंडित होते नहीं देख सकता। उसका खून खौल उठता है और तब सर्वस्व समर्पित करके भी वह मातृभूमि के मान की रक्षा करता है। देश-प्रेम का जपचा कितना गहरा होता है, यह इसी से जाना जा सकता है कि विषुवत् रेखा के निकट रहने वाला आतप सहता है, ध्रुव-प्रदेश का वासी बर्फानी शीत में लिटरता है, किन्तु अपना देश नहीं त्यागना चाहता। जैसा कि श्री राम ने कहा–'जननी जन्मभमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।'
सत्य ही कहा है मैथिलीशरण गुप्त जी ने भी-
'जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।'
देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है जो अमल असीम त्याग से विलसित है। जिस प्रेम से आत्मा का विकास और मानवता का विकास होता है।
निबंध नंबर :- 02
देश-प्रेम
Desh Prem
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।
वह हदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।
नैसर्गिक भावना : प्रत्येक देशवासी के हृदय में अपनी मातृभूमि के प्रति असी इस भावना से प्रेरित होकर वह तन-मन-धन से देश-सेवा के लिए तत्पर होता है। देश के योगदान देना, उसकी एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए सदैव तैयार रहना कल्याण के लिए निस्वार्थ भाव से कर्म करते रहना हो देश-प्रम है । जिस देश में डाले जिसका अन्न खाकर हम बड़े हुए हैं तथा जिसके जल से हमने अपनी पिपासा को शांत
मन जन्म लिया है. जिसके शीतल पवन ने हमारे प्राणों को नवस्फूर्ति प्रदान की है तथा जिसकी पावन मिटटी में कर हम बड़े हए हैं, उसके प्रति हृदय में पवित्र प्रेम की भावना होना स्वाभाविक है -
देश की माटी, देश का जल,
हवा देश की देश के फल
सरस बने प्रभु सरस बने ।
देश के तन और देश के मन
देश के घर के भाई बहिन
विमल बनें प्रभु विमल बनें ।।
देश का विकास : देश के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाना ही देश-प्रेम कहलाता है। आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए प्राण न्योछावर करना ही केवल देश-प्रेम नहीं बल्कि देश के विकास के लिए किया गया प्रत्येक कार्य इसी श्रेणी में आता है । कृषक, वैज्ञानिक, अध्यापक, वास्तुकार, व्यापारी, उद्योगपति सभी देश के विकास में हाथ बँटाते हैं और इसके प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हैं।
प्रेरक व्यक्तित्व : स्वदेश-प्रेम की भावना प्रत्येक मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान होती है। इसी भावना के कारण रानी लक्ष्मी बाई, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे वीरों ने हँसते-हँसते प्राण न्योछावर कर दिए । देश-प्रेम की भावना के कारण ही छत्रपति शिवाजी आजीवन मुगलों से युद्ध करते रहे । देश-प्रेम मनुष्य को गौरव प्रदान करता है । इसी भावना से प्रेरित होकर प्रवासी भारतीय भी देश के प्रति अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटते।
जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे, यह हर्ष ।
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारत वर्ष । ।
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