बिहू
Bihu Festival

 

बिहू देशभर में मनाए जानेवाले त्योहारों से सर्वथा भिन्न है। यह पर्व वर्षभर में तीन बार मनाया जाता है। इन्हें बोहाग बिहू, कार्तिक बिहू तथा माघ बिह के नाम से पुकारा जाता है। वसंत के मौसम में बोहाग बिह, शरद ऋतू में कार्तिक बिहू तथा माघ मास में माघ बिहू मनाया जाता है।

 

वसंत के मौसम में किसान अपने खेतों को जोतकर तैयार कर लेते हैं। इस कार्य में परिवार के सभी सदस्य उल्लासपूर्वक जुटे होते हैं। जब तेज़ हवाएं चलती हैं तथा आकाश से वर्षा की फुहारें गिरने लगती हैं तो किसानों का मन भी आह्लाद से झूम उठता है। यह समय होता है 'बोहाग बिहू' मनाने का। वास्तव में यह उत्पादनशीलता का प्रेरक त्योहार है। यह कई दिन तक चलने वाला पर्व है। चूंकि किसान का पशुओं से अटूट नाता है। खेती में सहायक पशु सदैव उसके आदूरणीय रहे हैं इसी धारणा के अनुसार 'बोहाग बिहू' के प्रथम दिन गाय-बैलों का पूजन किया जाता है।

सुबह-सुबह उठकर गाय-बैलों की मालिश कर मल-मलकर नहलाया जाता है। घर के बच्चे-बूढ़े सबका हृदय जोश से भरा होता है। सब पशुओं को उनके खूटों से खोल दिया जाता है। गाय-बैलों को रंगों और फूलों से सजाया व सँवारा जाता है। विधिवत गो-पूजा की जाती है। यही नहीं पशुशालाओं की लिपाई-पुताई कर उन्हें सजाया जाता है। इस अवसर पर पशुशालाओं में धान की भूसी जलाई जाती है। इसका वैज्ञानिक कारण स्थान शदधिकरण' है। भूसी जलाने से उत्पन्न धुआँ उस स्थान विशेष के मक्खी-मच्छरों का अंत कर देता है। लोग उड़द, हल्दी, नीम आदि का उबटन मल-मलकर स्नान करते हैं। इस अवसर पर गीत गाए जाते हैं। इसे 'गारू बिहू' कहा जाता है।

 

उत्सव का दूसरा दिन 'मानुह बिहू' के नाम से जाना जाता है। असम के निवासी नववर्ष का आरंभ भी यहीं से मानते हैं। इस दिन सब नएनए वस्त्र धारण करते हैं। घर के बुजुर्गों, मित्रों व संबंधियों से मिलते हैं तथा उन्हें बिहू की भेंट अर्पित करते हैं। घर पर बनाए गए लाल किनारी वाले गमछे भेंट में देते हैं जिन्हें 'गामोसा' कहा जाता है। इस दिन गाँव का गाँव ज्योतिषियों व पंडितों के घर जमा हो जाता है तथा लोग सामूहिक रूप से नववर्ष का पंचांग सुनते हैं। सब एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।

 

तीसरे दिन पूजा-पाठ की प्रधानता रहती है। इसे 'गोहाई बिह' के नाम से जाना जाता है। यह पर्व सात दिनों तक चलता है। सामूहिक प्रार्थना व धार्मिक अनुष्ठानों में सभी गाँव वाले उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। शहरों में भी बिह का जोश समान रूप से देखने को मिलता है। अंतिम दिन गाँव से बाहर उत्सव मनाया जाता है तथा इस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी किसी एक बुरी आदत को छोड़ने का व्रत लेता है। यह वास्तव में ही अत्यंत स्वस्थ परंपरा है।

 

बोहाग बिह के अवसर पर रात-रातभर गायन तथा नृत्य होता है। गोलाकार में मंथर गति से थिरकते. सामूहिक नृत्य में लीन, असमी युवकयुवतियाँ अत्यंत मोहक लगते हैं। इस अवसर पर तरह-तरह के खेलों का आयोजन किया जाता है। इनमें से भैंसों की लड़ाई प्रमुख आकर्षण होता है। कहीं-कहीं यह लड़ाई दो गांवों के मध्य प्रतियोगिता के रूप में होती है। अपने-अपने पशओं के बल और उत्साह की वृद्धि के लिए तालिया बजाते, गीत गाते असमी लोगों का जोश देखते ही बनता है। बिहू के मौके पर खेले जानेवाले नाना प्रकार के खेल 'कानिजूज' कहलाते हैं।

 

शरद ऋतू में रोपी गईं धान की कोंपलें कार्तिक मॉस आते आते बाहर झाँकने लगती हैं। किसान का मन इन कोंपलें को देखकर उल्लास से भर जाता है।

 

समय-समय पर होने वाले उत्सवों का नृत्य-गान और खेलकूद से अटूट रिश्ता है। सामूहिक रूप से मनाये जाने वाले बिहू उत्सव में सामाजिक और भावनात्मक एकता की झलक दिखाई देती है।  ऐसे पर्व केवल लोकजीवन की उल्लासपूर्ण अभिव्यक्ति हैं अपितु देश को एकसूत्र में जोड़ने वाली सदृढ़ कड़ी भी है।