छात्रावास जीवन 
Hostel Life

प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में छात्रों के लिए गुरुकुल स्थापित किए गए थे। अपने घर से दूर गुरुकुल के शांत सुरम्य वातावरण में रहकर छात्र अपनी समस्त वृत्तियों का विकास व परिष्कार करते थे। छात्र जीवन भविष्य की नींव है, इस विचारधारा को भारतीय मनीषियों ने सहसों वर्ष पूर्व स्वीकार कर लिया था। छात्रों के तन-मन व बुद्धि के पूर्ण विकास हेतु आश्रम व्यवस्था बनाई गई थी। इसी विचारधारा के महत्व को समझते हुए वर्तमान में छात्रावासों का गठन किया गया है।

 

छात्रावास जीवन संपूर्ण जीवन में अनोखा स्थान रखता है। छात्रावासों का शिक्षालयों से निकटतम संबंध होने के कारण इनका वातावरण बालक के व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है। छात्रावास में हर वर्ग व हर आयु के छात्र एक साथ रहते हैं। आर्थिक स्थितियों से उत्पन्न चारित्रिक विषमताएं छात्रावास में प्रवेश नहीं पातीं क्योंकि एकसाथ एक-सा भोजन करत हुए, एक-से वस्त्र पहनते हुए, एक-सी जीवन-शैली होने के कारण सब छात्र एक दूसरे से भावनात्मक स्तर पर जुड़ जाते हैं। परस्पर सौहार्द, मित्रता, मदद आदि की भावना उनमें स्वभावतः शामिल होती जाती है।

छात्रावास में बालक अपने परिवार से दूर रहता है। अपने विषय में उस सोचने का पर्याप्त अवसर मिलता है। दैनिक कार्यों के प्रति सचेष्ट हाने पर ही वह विद्यालय, भोजनालय और खेल के मैदान आदि में समय पर पहुंच पाता है। सब विद्यार्थियों को छात्रावास के नियमों का पालन करना पड़ता है। दिनभर के कार्यों को कार्यतालिका व समयतालिका के अनुसार करना पड़ता है। धीरे-धीरे छात्रावास में रहनेवाले छात्र समय के पाबंद व अनुशासित हो जाते हैं। अपनी व्यक्तिगत वस्तुओं को संभालकर रखना, अपनी पढ़ाई के लिए जागरूक रहना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना आदि बातें छात्रों की जीवनचर्या में समाहित हो जाती हैं। इनसे छात्रों में स्वावलंबन व आत्मविश्वास की भावना आती है।

 

छात्रावास में देश के प्रत्येक भाग से आए विद्यार्थियों के साथ रहने से बालकों को अपने देश की संस्कृति, कला, धर्म और भाषा आदि का ज्ञान होता है। मानसिक विकास के लिए छात्रावास उत्तम स्थल है। अपनी आयु के बालकों के साथ रहकर बालक विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं तथा शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन व ज्ञानवृद्धि भी होती रहती है।

 

छात्रावासों में विद्यार्थियों के लिए विशेष पुस्तकालय होते हैं। पुस्तक अध्ययन से छात्र अपने मनोरंजन के साथ विभिन्न विषयों की जानकारी प्राप्त करते हैं। पढ़ाई में कम रुचि लेनेवाले छात्र भी दूसरे विद्यार्थियों को पढ़ते देखकर पढ़ते हैं। संसर्ग के कारण उनमें स्पर्धा की भावना जागती है जिससे उनका भविष्य उज्ज्वल होता है। समय का सदुपयोग होने के कारण साधारण छात्र भी छात्रावास में रहकर मेधावी बन जाते हैं। छात्रों को चौबीसों घंटे शिक्षकों का मार्गदर्शन उपलब्ध रहता है जो उनके अध्ययन व शिक्षण में सहायक होता है।

 

छात्रावास में बालकों पर किसी प्रकार का मानसिक दबाव पड़ने की संभावना नहीं रहती। वे स्वतंत्र वातावरण में सहज ढंग से विकसित होते हैं। घर में कई बार पारिवारिक तनावों का अप्रत्यक्ष प्रभाव बालकों के विकास में बाधक बनता है परंतु छात्रावास में उन्हें अपने स्वतंत्र निर्णय लेने पड़ते हैं जिससे भविष्य में वे स्वस्थ जीवन व्यतीत करने में सक्षम हो पाते।

 

छात्रावास में छात्रों के खेलने का निश्चित समय होता है। छात्रों के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम कराए जाते हैं जो उनके तनमन में स्फूर्ति का संचार करते हैं। विशेष प्रशिक्षकों की देखरेख में प्रशिक्षण पाकर कई छात्र अपनी खेल-प्रतिभा में निखार लाते हैं। शयन, विश्राम, व अध्ययन में उचित समन्वय स्थापित करने में छात्रावासों का बहुत योगदान है।

 

कहा जा सकता है छात्रों के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए छात्रावासों में उचित प्रबंध होते हैं। इन गुणों के साथ कभी-कभी छात्रावास जीवन कुछ छात्रों में कुछ कुप्रवृत्तियों को भी जन्म दे देता है। कल छात्र छात्रावास में रहकर अपव्यय तथा फैशन के शिकार हो जाते हैं। किंतु कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश छात्रों के लिए छात्रावास कल्याणकारी ही सिद्ध होते हैं।

 

वर्तमान युग में भावी पीढ़ी को जिन चारित्रिक गुणों की आवश्यकता है उतना सम्यक विकास छात्रावास में ही हो पाता है। छात्रावास में उचित शैक्षिक वातावरण होने से बालक सभ्य, ज्ञानी व सुसंस्कृत बन पाते हैं। परस्पर मैत्री, उदारता, सहयोग और उपकार आदि गुणों का सराहनीय विकास पाकर ये छात्र सभ्य व कर्तव्यपरायण नागरिक बन जाते हैं।