देशाटन
 Travelling 

कोतूहल तथा जिज्ञासा मानव की दो मूल प्रवृत्तियाँ हैं। नव-नवीन स्थानों, नवीन लोगों को जानने-देखने के लिए वह सदेव आतुर रहा है। इसी उत्सुकता की पूर्ति के लिए वह देशाटन करता है। देशाटन का अर्थ है-विभिन्न स्थानों पर घूमना। देशाटन के महत्त्व को हर युग, हर काल तथा हर देश में स्वीकार किया जाता रहा है।

 

पाश्चात्य जगत के प्रख्यात प्रचारक मॉनटेन का कहना है कि देशाटन के अभाव में कोई भी व्यक्ति पूर्ण शिक्षित नहीं कहलाया जा सकता। मनीषा बेकन ने भी लिखा-"home keeping youth has homely wits" अथात देशाटन के अनुभव लिए बिना किसी भी युवा का विवेक सीमित रहेगा! यही कारण है कि आजकल विद्यालय स्तर पर भी देशाटन का सत्त्व स्वीकार किया जाने लगा है तथा उसे शिक्षा का ही एक अग माना जाने लगा है।

 

भारतवर्ष में तीर्थ यात्रा के रूप में देशाटन की महिमा पुराणों में भी गाई गई है । आदिकाल से ही मनुष्य देशाटन-प्रेमी रहा है। मानवीय सभ्यता इसी प्रवृत्ति का परिणाम है। एक स्थान पर रहते-रहते व्यक्ति का मन ऊब जाता है। पर्वतीय प्रदेशों का मनोरम शांत वातावरण प्रकृति के समीप लाता है, वहाँ के रमणीक दृश्य मनुष्य के मन में हर्ष-उल्लास भर देते हैं और कार्यक्षमता में वृद्धि करते हैं। ऐसे स्थानों की जलवायु स्वास्थ्य में भी सुधार लाती है।

 

देशाटन से मनुष्य व्यवहारकुशल, स्वावलंबी, धैर्यवान हो जाता है। विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलने के बाद, उसके व्यक्तित्व में भी विकास होता है। दूसरी ओर, विश्वबंधुत्व व संस्कृतियों के आदान-प्रदान में देशाटन का बहुत योगदान है। मन व मस्तिष्क में नवीनता लाने के लिए विद्यार्थियों को अवश्य देशाटन करना चाहिए।

 

देशाटन की प्रेरणा राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक और व्यापारिक आदि अनेक कारणों से मिलती है। यात्रा किसी भी उद्देश्य से हो वह व्यक्तिगत, सामाजिक व राष्ट्रीय हित में होती है। देश-दर्शन की भावना से ही अनेक उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है। अपने समाज व अपने देश की सांस्कृतिक विभिन्नता व महिमा से हमारा मन गौरवान्वित हो उठता है।

 

देशाटन देश की आर्थिक समृद्धि का भी आधार है। हजारों वर्ष पहले से ही व्यापारी लंबी-लंबी यात्राएँ कर देश-विदेश भ्रमण करते थे। उनका देशाटन न केवल आर्थिक समृद्धि अपितु सभ्यता के विस्तार का भी आधार बना। इन यात्राओं की परंपरा आज भी विद्यमान है। असंख्य लोग विश्वभर में व्यापारिक दृष्टि से यात्रा करते हैं। आजकल देशाटन से विदेशी मुद्रा प्राप्ति की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है। यही कारण है कि राज्य स्तर पर भी देशाटन को बढ़ावा दिया जा रहा है।

 

देशाटन मनोरंजन का उत्तम साधन है। प्रतिदिन की व्यस्तता से ग्रस्त मन देशाटन से सुख प्राप्त करता है। सौंदर्यमयी प्रकृति के विभिन्न रूपों के दर्शन हमें देशाटन से हा हो सकते हैं। दूर तक लहराता सागर, ऊँचे-ऊंचे देवदार के वृक्ष, रेत के टीले, बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, नारियल के हरे ऊंचे पेड, समतल मैदान, हरी-भरी वादियाँ, झरने-नदियाँ और उनके निकट रहते लोग, उनका रहन-सहन, खान-पान, भाषा, विचार, कला, संगीत. नृत्य और न जाने क्या-क्या मनोरंजन के साथ सीखने को मिलता है।

 

विद्यार्थियों के लिए देशाटन का बहुत महत्त्व है। इतिहास और भूगोल की पुस्तकों में जिन स्थाना का वर्णन छात्रों को पढ़ाया जाता है जब वे उन स्थानों की यात्रा कर लेते हैं तो उनका ज्ञान दृढ़ हो जाता है। मोहेंजोदड़ो व हड़प्पा के अवशेष, अजंता एलोरा की गुफाएँ, सारनाथ, बौद्ध मठों के दर्शन आदि असंख्य चीजें देशाटन से प्रत्यक्ष देखने को मिलती हैं। छात्रों को भूगोल, इतिहास, मूर्तिकला, भवन निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में ज्ञान व अनुभव प्राप्त होता है।

 

निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि व्यक्ति के उत्तम मनोरंजन, ज्ञानवृद्धि, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव और मैत्री को बढ़ाने का सबसे सुलभ साधन देशाटन ही है।