मनोरंजन
के साधन
Manoranjan ke Sadhan
काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्
व्यसनेन च मूर्खाणाम् निद्रया कलहेन वा
अधिमान लोग अपने खाली समय में काव्यशास्त्र
अध्ययन कर आनंद प्राप्त करते हैं। दिनभर के कार्य के पश्चात क्लांत मन को
प्रफुल्लित करना नितांत आवश्यक है। मनोरंजन का मानव जीवन में विशेष महत्त्व है। तन
को स्वस्थ रखने व मन को उल्लास से परिपूर्ण करने में मनोरंजन के साधनों की सराहनीय
भूमिका है। काम करते-करते जब मन और बुद्धि थक जाते है तो कार्यक्षमता बढ़ाने, दूने
उत्साह से काम में जुट जाने तथा अवयवों में उमंग भरना ही मनोरंजन की पष्ठभूमि है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि मनोविनोद के क्षणों
में आंतरिक शक्तियों का विकास होने लगता है। वैज्ञानिक युग में मनोरंजन के अनेक
साधन सुलभ हो गए हैं। वर्तमान युग मशीनी युग है। मनुष्य का समस्त जीवन व्यस्तता से
ओतप्रोत है। ऐसे में मनोरंजन के विभिन्न साधन उसे नवीन कार्यक्षमता व उल्लास
प्रदान करते हैं।
प्राचीन काल से ही मनुष्य विभिन्न प्रकार के
खेल-खेलकर मनोरंजन प्राप्त करता रहा है। क्रिकेट, हॉकी, फूटबॉल, टेनिस, कबड्डी
आदि खेलों से खिलाड़ियों व दर्शकों दोनों का भरपूर मनोरंजन होता है। शारीरिक स्थ्य
बनाए रखने में भी इन खेलों का विशिष्ट योगदान है। यही कारण है कि सभी उम्र के लोग
इन खेलों का आनंद लेते हैं। घर के भीतर खेले जानेवाले कैरम, चौपड़, शतरंज
आदि खेलों से भी मनुष्य के मस्तिष्क का व्यायाम व
मनोरंजन होता है। आजकल बालकों के लिए तरह-तरह के खेल बाज़ार में उपलब्ध हैं जो
उनकी विभिन्न क्षमताओं का खेल ही खेल में विकास करते हैं।
देशाटन भी मनोरंजन का उत्तम साधन है।
प्रात:कालीन व सांध्यकालीन सैर भी मन को आनंद देती है। प्राकृतिक सौंदर्य मनुष्य
को विशिष्ट आलाद से भर देता है। देश-देशांतरों की सैर से कला, संस्कृति, इतिहास
का ज्ञान बढ़ता है। विभिन्न प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थलों का सौंदर्य और कला-वैभव
मन को अभूतपूर्व प्रसन्नता प्रदान करता है। आजकल पर्यटन मनोरंजन का उत्तम साधन
माना जाता है। देश-विदेश के लोगों को अपने देश में यत्र-तत्र घूमते व आनंदित होते
देखा जा सकता है।
पुस्तकालय जाना और अध्ययन करना भी उत्तम
मनोरंजन है। खाली समय में विभिन्न भाषाओं का साहित्य, पत्र-पत्रिकाएँ
पढ़ने का आनंद ही निराला है। पुस्तकालय के वाचनालयों में सभी उम्र के लोग बैठकर
अध्ययन का आनंद लेते हैं। प्राचीन काल से लोग इस प्रकार कथा, कहानी, नाटक
पढ़कर और सुनकर मनोरंजन करते आए हैं। शिक्षित वर्ग पढ़कर तथा अशिक्षित वर्ग सुनकर
पुस्तकों का आनंद युगों से उठाता रहा है। हमारे देश में रामायण, महाभारत
और भागवत की कथाएँ सैकड़ों वर्ष पूर्व भी कही-सुनी जाती थीं।
नृत्य, संगीत और कला के विभिन्न रूप भी मनोरंजन के
रचनात्मक व पुष्ट स्वरूप हैं। मूर्तिकार को मूर्ति बनाने में, चित्रकार
को चित्र बनाने में जो आनंद आता है उसका वर्णन करना कठिन है। वाद्य संगीत, गायन
व नृत्य की महिमा का वर्णन भरत के नाट्यशास्त्र में मिलता है। वैज्ञानिकों का
मानना है कि संगीत की सुरम्य धुनों का प्रभाव मानव मन पर ही नहीं, पशु-पक्षी
व पेड़-पौधों तक पर होता है। संगीत का आनंद लौकिक आनंदों से भिन्न प्रकार का आनंद
है।
आधुनिक युग में चलचित्र तथा टेलीविज़न पर प्रसारित
होनेवाले विभिन्न चैनलों के कार्यक्रम भी मनोरंजन के उत्तम साधन हैं। कुछ लोग की
राय है कि वर्तमान में प्रसारित होनेवाले कार्यक्रमों से वर्तमान पीढ़ी पर बुरा
असर पड़ रहा है। ये कार्यक्रम उन्हें भारतीय चिंतन-मनन, दर्शन, कला
ति से विमुख कर रहे हैं। रेडियो कई दशक पहले ही जन-जीवन गबन गया था। आजकल रेलवे
स्टेशन, बस अड्डों,
बस व रेलों में यात्रा
करते समय भी रेडियो व टेलीविज़न के
कार्यक्रमों में मग्न लोगों से देखा जा सकता है। चौबीस घंटे प्रसारित होनेवाले
ज्ञान विज्ञान, समाज, पति कथा,
गीत-संगीत और सिनेमा पर आधारित ये
कार्यक्रम खाली समय का अधिकांश भाग मनोरंजक बनाते हैं।
प्राचीन काल में मल्लयुद्ध, कुश्ती, स्थानीय
खेल, मेले, उत्सव, कवि सम्मेलन, सरकस, नाटक
के विभिन्न रूप भी मनोरंजन के अंग थे। इनमें से कुछ आज भी जीवित हैं परंतु समय के
साथ-साथ मेले और स्थानीय खेलों में आई कमियों को दूर करने हेतु सरकारी प्रयास भी
किए जा रहे है। आज फिर से मेले, उत्सव, स्थानीय खेल, स्थानीय
नृत्य-संगीत के महत्त्व को समझा जाने लगा है तथा फिर से राज्य स्तर पर इनका आयोजन होने
लगा है।
मनोरंजन का व्यक्तिगत पसंद से विशेष संबंध है।
प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार ही मनोरंजन करता है। मनोरंजन जीवन के लिए
नितांत आवश्यक है परंतु इसके लिए सतर्क व सजग रहने की आवश्यकता है। हम मनोरंजन के
उन साधनों को अपनाएँ जिनसे धन व समय अपव्यय न हो वरन् संतुलित स्वस्थ मनोरंजन
प्राप्त हो सके।
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