नर हो न निराश करो मन को 
Nar ho Nirash na Karo Mann ko

निबंध # 01

नर-पुरुष-दृढ़-ये समान अर्थ वाले शब्द। पुरुष वह है जो मज़बूत हो, दृढ़ हो, उसमें मुसीबतों से लड़ने की ताकत हो। पुरुष वह है जो हर निराशा को आशा में बदल दे-अपनी हिम्मत से, साहस से, दृढ़ इच्छा-शक्ति से। गाँधी जी का उदाहरण-अकेले अंग्रेज सरकार के विरुद्ध खड़े हुए सुभाष आजाद हिंद फौज लेकर अंग्रेजों से भिड़ गया अकेला प्रताप अकवर से लड़ गया-अकेला जुगनू अँधेरी रात से लड़ता है दीया रात को दिन में बदलने की हिम्मत करता है। बड़े-से-बड़ा अँधेरा भी दीपक को निगल नहीं सकता। अतः मनुष्य तुम जहाँ भी हो, संघर्ष करो।


निबंध # 02 

 नर हो न निराश करो मन को 
Nar ho Nirash na Karo Mann ko


संकेत बिंदु -सफलता का आधार -आत्मविश्वास -संघर्ष में विजय -असंभव का संभव होना -लक्यप्राप्ति का एकमात्र आधार

मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में निराश नहीं होना चाहिए। आशावादिता ही सफलता दिलाती है। सफलता का आधार मनुष्य का आत्मविश्वास ही है। आत्मविश्वासी व्यक्ति ही जीवन में सफल होता है। सफलता पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष से ही विजय मिलती है। मन में कभी भी निराशा को नहीं आने देना चाहिए। आशावादी और आत्मविश्वासी व्यक्ति असंभव को भी संभव बनाने की क्षमता रखता है। जब व्यक्ति निराश हो जाता है, तब वह कुछ भी नहीं कर पाता है। हमें अपने मन को कभी निराश नहीं करना चाहिए। जब तक मन में आशा का संचार होता रहता है तब तक व्यक्ति सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ता चला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का कोई-न-कोई लक्ष्य अवश्य होता है। उस लक्ष्य को पाने का एकमात्र आधार यही है कि मन मे कभी भी निराशा की भावना को मत आने दो। निराशा लक्ष्य प्राप्ति की दुश्मन है।