परिश्रम का महत्त्व 

Parishram ka Mahatva



श्रम ही सों सब मिलत है, बिन श्रम मिले न काहि।

सीधी उंगरी घी जमो, कबहूँ निकसत नाहिं। 


ईश्वर ने सृष्टि को कर्मप्रधान बनाया है। कर्म का क्षेत्र जन्म लेते ही आरंभ हो जाता है। प्रकृति का प्रत्येक पदार्थ हमें कर्मरत रहने की प्रेरणा देता है। पवन बिना रुके बहती है। सूर्य, धरती, चाँद, नक्षत्र सब निरंतर गतिशील रहते हैं, नदियाँ सतत बहती रहती हैं तो फिर मानव जीवन की कल्पना बिना परिश्रम के कैसे संभव है.


परिश्रम का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सदा से मनुष्य जीवन के लिए संघर्ष करता आया है। शारीरिक या मानसिक रूप से उत्कृष्ट कोटि का श्रम ही परिश्रम कहलाता है। इतिहास साक्षी है कि संसार में सफलता के शिखर पर वही व्यक्ति पहुँचता है जो सदा परिश्रम करता रहता है। श्रम वह तपस्या है जिसमें तपकर मनुष्य का व्यक्तित्व निखर उठता है। कर्महीन मनुष्य का जीवन लक्ष्यहीन हो जाता है। ईश्वर प्रदत्त शक्तियों के विकास तथा अपने उदेश्य को प्राप्त करने के लिए सतत परित्रम अत्यंत आवश्यक है।


से मनुष्य की शारीरिक, बौद्धिक तथा मानसिक शक्तियों का होता है। संसार की समस्त वैज्ञानिक आर्थिक, औद्योगिक तथा कि उन्नति का आधार परिश्रम ही है। परिश्रम के ही कारण मनुष्य एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ पाया, अंतरिक्ष की यात्रा कर पाया, हजारों किलोमीटर दूर की यात्रा कर एक देश से दूसरे देश का संबंध स्थापित कर पाया। परिश्रम के कारण ही कल तक जंगलों में भटकने वाला प्राणी आज विमान में सुखपूर्वक यात्रा करता है। श्रम का महत्त्व हर युग, हर काल में स्वीकार किया जाता रहा है. 


परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। इसीलिए दाशनिको का मत है कि उन्नति का द्वार केवल परिश्रम की चाबी से ही खोला जा सकता है। कहा भी गया है-


उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः,

नाहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।


अर्थात परिश्रम से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मन की इच्छा से नहीं। सोर हुए शेर के मुख में हिरन स्वयं प्रवेश नहीं करता। प्रकृति में प्रत्येक तत्व को जीवन के लिए संघर्षरत रहना पड़ता है। छोटी-सी चींटी भी परिश्रम के द्वारा भोजन का भंडार जमा कर लेती है। परिश्रम के द्वारा ही  मनुष्य ने बड़ी-बड़ी नदियों के रुख बदल दिए। ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का अंदाजा लगा लिया। जेट और नेट विमान बना लिए। मशीनी मानव व कम्प्यूटर बनाकर अपनी अलग ही दुनिया खड़ी कर ली।


मनुष्य जीवन में परित्रम की महत्ता अद्वितीय है। यह वह शक्ति है जामनुष्य जीवन ही बदल सकती है। इससे शरीर तथा मन दोनों उल्लास से भरे रहते हैं। मनुष्य का जीवन आनंदित व सुखमय बनता है। श्री कृष्ण ने भी गीता में कर्मयोग का संदेश दिया। परिश्रम में जुट रहने पर सफलता मनुष्य के चरण चूमती है। परिश्रम से मनुष्य का सभी शक्तियाँ निखरकर अपने उत्कृष्ट रूप में प्रकट होती हैं।


जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं ईश्वर भी उनकी मदद करता है। व्यक्ति परिश्रम करते हैं, वे स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट होते हैं। उनमें अचार कार्यक्षमता उत्पन्न हो जाती है तथा वे ही इस वसुंधरा के समस्त सुख भोगते हैं।  

महात्मा गांधी, लिंकन, मार्क्स, चर्चिल, लालबहादुर शास्त्री की जीवनकथा स्वयं परिश्रम की महत्ता का गुणगान करती है। जॉर्ज वाशिंगटन ने परिश्रम की महत्ता का गुणगान करते हुए लिखा है-कोई भी जाति तब तक उन्नति नहीं कर सकती जब तक वह यह नहीं सीखती कि खेत जोतने का भी वही महत्व है जो काव्य सृजन का।


परिश्रम ही जीवन का सार है। परिश्रम से व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करता है। 'देव-देव' तो आलसी व्यक्ति पुकारा करते हैं। परिश्रमी तो अपने भाग्य के द्वार स्वयं खोलते हैं। जो परिश्रमी होते हैं.' वे जल की खोज में भटकते नहीं वरन् स्वयं कुआं खोद निर्मल जल का आनंद लेते हैं।


परिश्रम से ही आराम का आनंद है। दिनभर की थकान के बाद विश्राम का आनंद ही निराला है. श्रीमती थ्रेल ने कहा, "leisure for men of business, and business for men of leisure would cure many complaints." अर्थात काम व आराम का परस्पर गहन संबंध है। भारतीय संस्कृति में तो यहाँ तक माना गया है कि सतत कर्मरत रहने वाला प्राणी ही मोक्ष को प्राप्त होता है। जापान की समृद्धि उनके सतत परिश्रम का ही परिणाम है। कवि दिनकर लिखते हैं-


वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो, 

चट्टानों की छाती से दूध निकालो, 

है रुकी जहाँ भी धार शिलाएँ तोड़ो,

पीयूष चन्द्रमाओं को पकड़ निचोड़ो। 


भारतीय इतिहास साक्षी है कि भारतीयों ने अपने देश से अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ फेंका था। प्रकृति भी भाग्य के बल पर झुकती है। कवि दिनकर कहते हैं-


प्रकृति नहीं डरकर झुकती है कभी भाग्य के बल से 

सदा हारती है मनुष्य के, उद्यम से, श्रम जल से


विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का बहुत महत्व है। एडीसन ने इस विषय में कहा है कि-सफलता का कारण प्रतिभा है परंतु प्रतिभा क्या है? एक औंस बुधि और एक टन परिश्रम. सतत परिश्रम कर साधारण छात्र भी असाधारण सफलता प्राप्त कर सकते हैं। परिश्रम व अभ्यास से वरदराज जैसे मूर्ख ने पाणिनि जैसे ग्रंथकारों की टिप्पणी की। कालिदास तथा तुलसीदास जैसे ग्रंथकार बने। विद्यार्थी जीवन में परिश्रम करनेवाला छात्र सुनहरे भविष्य की नींव तैयार करता है। इसीलिए कवि का हृदय पुकार उठा-


श्रम जीवन का सार है श्रम मानव का हार है, 

श्रम करता है गुण महान, श्रम सच्चा व्यवहार है।