वृक्षारोपण 
Vriksharopan

'श्वेताश्वरोपनिषद्' में वृक्षों को साक्षात् ब्रह्मा के समान मानते हुए कहा गया है-'दस कुंजों के बुराबर एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के बुराबर एक तालाब है, दस तालाबों के बुराबर एक पुत्र एवं दस पुत्रों के बुराबर एक वृक्ष है।' इसी प्रकार 'विष्ण धर्म-सूत्र' में कहा गया है कि प्रत्येक जन्म में लगाए वृक्ष अगले जन्म में संतान रूप में मिलते हैं। वाराहपुराण' में उल्लेख मिलता है कि जो पीपल, नीम या बरगद का एक, अनार, नारंगी के दो, आम के पाँच एवं लताओं के दस पौधे लगाता है, वह कभी नरक में नहीं जाता। 'स्कंद पुराण' में कहा गया है कि व्यर्थ में वृक्षों को काटने वाला मनुष्य नरक में जाता है। वृक्षों के महत्त्व को समझने वाले दूरदर्शी मनीषियों के देश की आज क्या दशा है? लगभग एक चौथाई जंगल काटे जा चुके हैं और कटाई का काम निरंतर जारी है। परिणाम ? भूमि का कटाव, बाढ़ें, सूखा। वृक्ष जीवन का आधार होते हैं। उनमें औषधीय गुण तो होते ही हैं, साथ ही साथ वे प्रदूषण को भी नियंत्रण में रखते हैं। आज वृक्षों के कटने से जंगली जानवरों, पक्षियों के बसेरे उजड़ गए हैं। प्राकृतिक-संतुलन गड़बड़ा गया है। जगदीशचंद्र बोस ने तो बहुत बाद में सिद्ध किया कि पेड़-पौधों में भी संवेदना होती है, जबकि हमारे ऋषि-मुनियों ने तो हजारों वर्ष पहले वृक्षों में देवी-देवताओं का निवास मान उनकी आराधना की। कालिदास की शकुंतला जब आश्रम छोड़ पति-गृह जा रही होती है तो वृक्षों का उसे वल्कल दान, वल्लरियों का पुष्पदान और आलता देना, वृक्षों से हमारे आत्मीय संबंधों को दर्शाता है। वृक्ष-हीन धरती की कल्पना मात्र सिहरन पैदा कर देती है। 'चिपको आंदोलन' जैसे आंदोलनों की आज हमें आवश्यकता है, तभी हम अपनी धरती को 'शस्य-श्यामल' और मानव के रहने योग्य बनाए रख सकेंगे।