यदि मैं प्रधानमंत्री होता
Yadi Mein Pradhan Mantri Hota
भारतीय संविधान की गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री की विशिष्ट भूमिका होती है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इस उच्च पद की मर्यादा तथा देश की प्रतिष्ठा के अनुकूल वे सब काम करता जिससे देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व नैतिक स्थितियों में गुणात्मक सुधार आता तथा देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होता।
हमारा देश विकासशील देश है। यहाँ नागरिकों की आर्थिक स्थिति काफ़ी कमजोर है। यहाँ अधिकांश जन सामान्य गांवों में निवास करता है। एक तरफ जहाँ गरीब व्यक्ति जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ति के लिए दिन-रात प्रयत्नशील रहता है, वहीं दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती महंगाई की समस्या आम आदमी की कमर तोड़ देती है। काला धन, तस्करी और जमाखोरी महँगाई में लगातार वृद्धि के मुख्य कारण बनते हैं।
किसान परिश्रम कर उत्पादन बढ़ाते हैं परंतु सूदखोर तथा जमाखोर अपने स्वार्थवश माल को बाजार में आने नहीं देते जिससे निरंतर मूल्य वृद्धि होती जाती है। ऐसे में सत्तारूढ़ सरकार की प्रमुख भूमिका होती है-यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो ऐसी नीतियाँ बनाता कि जमाखोरो जड़ से ही समाप्त हो जाती।
उत्पादकता में कमी के अधिकांश दोष सरकारी नीतियों तथा अयो अधिकारियों को जाते हैं। सरकारी तंत्र में उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के अनावश्यक खर्चे, कर्मचारियों की हड़ताल, बेकारी की समस्या पंचवर्षीय योजनाओं का केवल कागजी बन जाना जैसी बातों पर मैं ध्यान देता। लघु उद्योग-धंधों को बढ़ावा देकर मैं देश की आम जनता के जीवन को सुधारने का प्रयत्न करता।
देश की मुख्य समस्या बेरोजगारी है। देश में उदारीकरण की चर्चाएं हो रही हैं। कोई भी विकासशील देश बड़े तथा छोटे दोनों प्रकार के उद्योग-धंधों के उचित अनुपात में, वृद्धि के योग से ही पर्याप्त तरक्की कर सकता है। जहाँ देश को विदेशी तकनीक की आवश्यकता है, वहाँ यह भी आवश्यकता है कि ऐसी विदेशी कंपनियों को उद्योग स्थापित करने की छूट न दी जाए जो स्वदेशी लघु तथा कुटीर उद्योगों को निगल जाएँ।
हमारे देश में आज तकनीक व औद्योगिकी का पर्याप्त विकास है। ऐसे में मैं उचित नीतियाँ बनाता ताकि जो वस्तुएँ अपने देश में बनाई जा सकती हैं उनके उत्पादन के लिए विदेशी कंपनियों को प्रवेश न मिल सके।
विदेशी कंपनियों को अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं के क्षेत्र में प्रवेश देना स्वयं अपने देश की उन वस्तुओं के लिए आर्थिक हानि करना है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो स्वदेशी के महत्त्व को समझता तथा इसका व्यापक प्रचार व प्रसार करता।
आज असंख्य चिकित्सक, वैज्ञानिक, इंजीनियर शिक्षा प्राप्त कर विदेश चले जाते हैं। उन सबकी शिक्षा पर देश का काफी धन व श्रम व्यय होता है। विदेश चले जाने पर उनके ज्ञान व अनुभव का लाभ विदेशी कंपनियो को मिलता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो ऐसी नीतियाँ बनाता कि इन सब बुद्धिजीवियों को अपने ही देश में पर्याप्त धन व सुविधाएँ दी जाती जो उनके ज्ञान व कौशल के अनुरूप होतीं ताकि वे अपने देश की उन्नति में योगदान करते। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो अपने देश के युवाओं के ज्ञान, कौशल तथा तकनीकी शिक्षा का पूर्ण लाभ अपने देश को पहुँचाता।
वर्तमान समय में देश में भ्रष्टाचार व्याप्त है। हर विभाग में कुछ ऐसे कर्मचारी हैं जो सरकारी धन का अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग कर आज देश में आर्थिक, सामाजिक, नैतिक व राजनैतिक शिथिलता आ सकती है। मानवीय मूल्यों का निरंतर पतन हो रहा है तथा हर में असामाजिक तत्वों की विजय दिखाई देती है। देश में भारतीय जीवन-मूल्यों की सर्वत्र पराजय दिखाई देती है अतैव ऐसी भ्रष्ट नीतियों, भ्रष्ट कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ़ मैं कठोर दंड का प्रावधान करता ताकि जनसामान्य के अधिकार सुरक्षित रह सकें।
यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो राजभाषा हिंदी के विकास व प्रसार के लिए भरपर प्रयत्न करता। हमारे देश में भाषावार प्रांत निर्माण के कारण आज भाषा की अपनी ही देश में दयनीय स्थिति हो गई है। अनेक विदेशी प्रधानमंत्री भले ही वे कहीं की यात्रा पर हों पर वे अपनी मातृभाषा ही बोलते हैं। भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ कागजी तौर पर हिंदी को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है परंतु व्यावहारिक तौर पर संसद से लेकर दूरदर्शन तक में अंग्रेजी की लाठी टेके बिना संवाद पूरा नहीं होता। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो उच्चस्तरीय शिक्षा की व्यवस्था मातृभाषा में उपलब्ध कराता ताकि छात्रों की सारी क्षमता और योग्यता विषय को समझने में लगे न कि भाषा सीखने में। मैं भाषा को शिक्षण का माध्यम बनाता न कि लक्ष्य।
देश में नई शिक्षा नीति लाग होने पर भी उसके लक्ष्य सिद्ध नहीं हो रहे। तकनीकी शिक्षा के अभाव में हजारों नवयुवक अपने भविष्य को अंधकारमय बना रहे हैं। आज जीवन के हर कदम पर सामाजिक विघटन, तोड़-फोड़, हिंसा और जातिवाद के दर्शन हो रहे हैं। यदि मैं प्रधानमंत्री हाता तो इन सभी समस्याओं के निवारण का सार्थक प्रयास करता। सरकारी उच्चस्तरीय पदों के लिए योग्यता को प्रमुखता देता। अन्य किसी पक्ष को महत्त्व देने का अर्थ देश की उन्नति के मार्ग में व्यवधान उपस्थित करना।
यदि में प्रधानमंत्री होता तो छात्रों के नैतिक व बौद्धिक बल पर ही नौकरी की सुविधा उपलब्ध कराता। योग्य व्यक्ति ही देश को सही नीतियाँ, सही दिशा प्रदान कर सकते हैं। अकर्मण्यता और रिश्वतखोरी को समाप्त करने में में कठोर कदम उठाता तथा अपने उत्तरदायित्वों का पूरी तरह से पालन करता, चाहे मुझे कितने ही विरोध क्यों न सहने पड़ते.
यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो देश की आर्थिक, शैक्षिक और औद्योगिक स्थितियों में सुधार के साथ-साथ देश की कानूनी व न्यायिक व्यवस्था में भी सुधार करता ताकि आम व्यक्ति को भी उचित न्याय मिल सके।
प्रधानमंत्री होते ही मैं जिला स्तर के सभी अधिकारियों तक से स्वयं मिलता तथा जनता की समस्याओं के निवारण की ओर सतत प्रयत्नशील रहता। अपने निर्वाचन क्षेत्र की भाँति देश की समस्त जनता से व्यक्तिगत रूप से जुड़े बिना उन्हें समझना कठिन है। मैं इस दिशा में अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता।
यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो देश की आंतरिक शांति व समृदधि की तरफ़ ध्यान देता तथा राज्य निर्माण, जल बँटवारे आदि की समस्याओं को शीघ्र निबटाता। शिक्षा का निजीकरण पूर्णतया समाप्त कर देता ताकि सबको शिक्षा का समान अधिकार मिलता। अपने देश की विभाजक तथा विघटनकारी ताकतों का समूल नाश करता। मैं देश के चारित्रिक उत्थान हेतु भ्रष्ट व अश्लील सिनेमा व विज्ञापनों पर पूर्णतया रोक लगा देता। खेल जगत के विकास के लिए युवाओं को पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध करवाता।
मैं देश की सैन्य शक्ति में वृद्धि करता ताकि विश्व स्तर पर आत्मसम्मान व देश के गौरव की रक्षा की जा सके। शत्रु देशों के प्रति कठोर कदम उठाता। मैं ऐसा प्रावधान करता कि सीमाओं की रक्षा कर रहे जवानों के परिवारों को अधिक सुविधाएँ मिलें ताकि वे अपनी पारिवारिक चिंताआ से मुक्त होकर प्राणपण से देश की रक्षा कर सकें। घुसपैठियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करता। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो प्रत्येक क्षण तन, मन और धन से देशसेवा में तल्लीन रहता।
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