बड़े भाई द्वारा छात्रावास में पढ़ाई कर रहे छोटे भाई को सही मार्ग-दर्शन करते हुए। 

चक-32 

जिला-होशियारपुर 

पंजाब 

10 नवंबर 2014 

प्रिय अखिल, 

प्रसन्न रहो! आज तुम्हारे मित्र श्याम से मिलना हुआ। वह अपने बीमार पिता को देखने आया था। उससे ज्ञात हुआ कि इस बार प्रथम सत्र की परीक्षा में गणित और अंग्रेजी में तुम्हारे बहुत कम अंक आए हैं। यह जानकर और अधिक बुरा लगा कि प्रधानाचार्य को तुम्हारे विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करनी पड़ी थी, जब तुम्हें उन्होंने सिगरेट पीते हुए रंगे हाथों पकड़ा था। मेरे प्यारे भाई, तुम जानते हो किन मुश्किलों से हम तुम्हारी पढ़ाई का खर्चा दे पा रहे हैं। पिता जी के गुजर जाने के बाद चाचा जी ने हमारे खेतों पर अपना कब्जा कर लिया था। दसरों के खेतों में काम करके माँ और मैं किसी तरह घर चला रहे हैं। दो जून की रोटी जुटाना जहाँ मुश्किल हो, वहाँ शहर में तुम्हारी पढाई के लिए किस प्रकार हम पैसा भेज रहे हैं, क्या तुम नहीं जानते? अपने खेतों के चले जाने और पिता जी की अचानक मौत के सदमे से माँ अब तक उबर नहीं पाई है। तुम्हारी हरकतों की जानकारी यदि हो गई तो सोचो उन पर क्या बीतेगी? तुम्हें लेकर उनकी आँखें जो सपने बुन रही हैं उन्हें यूँ मत तोड़ो। तुम तो इतने भोले, प्यारे बच्चे थे, माँ-बाप की आँख का तारा थे, अब किस सोहबत में पड़ कर अपना लक्ष्य भूलने लगे हो। यहाँ गाँव का पाठशाला में सारे अध्यापक तम्हारी प्रतिभा के कायल थे। अपनी उस प्रतिभा को वहाँ और निखारो, सँवारो। माँ दिन-रात तुम्हें याद करती हैं, आशीर्षे देती हैं-उनकी आशीषों को व्यर्थ न जाने दो। 

कहते हैं न-'जब जागो तब सवेरा'-अच्छे बच्चों के साथ रहो। जिस लक्ष्य और स्वप्न को लेकर शहर गए थे उसे स्मरण रखो। सान अपने भाग्य का स्वयं निर्माता होता है। मुझे अपने भाई पर पूरा विश्वास है, शीशे पर जमी धूल की तरह बुरी सोहबत छोड़ दाग तो फ़िर से तुम्हें अपनी वही तेजस्वी छवि दिखाई दे जाएगी। बहुत-बहुत प्यार और शुभकामनाओं सहित-

तुम्हारा 

भाई