ग्रीष्मावकाश साथ बिताने के लिए अपने चचेरे भाई को पत्र। 

रामकुटीर 

रानीखेत 

9 अप्रैल 2014 

प्रिय राकेश, 

सस्नेह नमस्ते! आशा है आप सब कुशलपूर्वक होंगे। यहाँ भी सब कुशल मंगल है। जब से पिताजी का यहाँ तबादला हुआ और हम सबके साथ रहने का अवसर मिला है, तब से लगता है जैसे भगवान ने एक साथ ढेर सारी खुशियाँ झोली में डाल दी है। पिछले तीन वर्षों से हम पिताजी से दूर थे और पुरानी दिल्ली की भीड़ भरी गली में रह रहे थे। एक ओर यहाँ का पर्वतीय सौंदर्य, खुली हवा, शांति और दूसरी ओर इतना श्रेष्ठ विद्यालय। यदि कोई कमी है तो बस यह कि तुम्हारा साथ नहीं है। माँ ने चाची जी को पत्र लिखा था। चाचाजी को केवल एक सप्ताह का ही अवकाश मिल पाएगा, किंतु तुम्हें पूरा ग्रीष्मावकाश हमारे साथ व्यतीत करना है। हमारे घर से हिमाच्छादित पर्वत-श्रृंखला स्पष्ट दिखाई देती है। सूर्योदय और सूर्यास्त की मनोहर छटा तुम्हारा मन मोह लेगी। चारों ओर हरे-भरे ताड और देवदार के वृक्ष, फूलों से भरी झाड़ियाँ, भाँति-भाँति के सुंदर पक्षी। मेरे भेजे चित्रों से तुम कुछ अनुमान तो लगा ही सकते हो। 

पिताजी ने वादा किया है कि तुम्हारे आने पर वह हमें कुछ दिनों के लिए कैंपिंग भी करवाएंगे। बियाबान जंगल के बीच तंबू और लकडियों पर पकाया खाना। मुझे तो सोचकर ही रोमांच हो आता है। अगले वर्ष कहीं पिताजी का यहाँ से फ़िर तबादला न हो जाए. इसलिए इस वर्ष तुम ज़रूर आना। मैं बेसब्री से तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रहा हैं। 

आदरणीय चाचा जी, चाची जी को मेरा सादर प्रणाम। 

तुम्हारा भाई 

रोहन