अपना हाथ जगन्नाथ 
Apna Hath Jaggannath

प्रभु भी उनकी सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। अपनी, क्षमता, योग्यता, परिश्रम और लगन का अवलंब लेकर जो व्यक्ति जीवन-पथ पर आगे बढ़ता है उसकी सफलता निश्चित है। ऐसे व्यक्ति का आत्मविश्वास इतना दृढ़ होता है कि कोई आलोचना, कोई बाधा, कोई संकट उसे दूसरे का आश्रय लेने के लिए विवश नहीं कर सकती है। सिंह और सियार में जो अंतर है वही स्वावलंबी और परमुखापेक्षी में होता है। सिंह भूखा रह जाए किंतु किसी दूसरे के शिकार को मुँह तक नहीं लगाता। दूसरी ओर सियार सदैव दूसरे के जूठे, बचे-खुचे शिकार की तलाश में भटकता फिरता है। इसलिए श्रेष्ठ पुरुष को 'नरसिंह' कहा जाता है। स्वावलंबी व्यक्ति भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठता उसका तो 'अपना हाथ जगन्नाथ' होता है। परावलंबन कायरता का द्योतक है, दयनीय अवस्था का जनक है। इसके विपूरीत स्वावलंबन साहस, आत्मबल, धैर्य जैसे श्रेष्ठ गुणों का सहोदर है। स्वावलंबी व्यक्ति का व्यक्तित्व स्वाभिमान की अनोखी आभा से दीप्त होता है। कविवर बच्चन ने इसीलिए कहा-

'वृक्ष हों भले खड़े, 

हों घने, हों बड़े, 

एक पत्र छाँह भी, 

माँग मत! माँग मत! माँग मत!'