मधुर वाणी का महत्त्व 
Madhur Vani Ka Mahatva 


भावनाओं एवं विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है-वाणी। इतना ही नहीं, वाणी हमारे चरित्र को भी उजागर करती है। यदि हम मधुर एवं विनम्र वाणी में बोलते हैं तो सर्वत्र प्रशंसा होती है, जबकि कट वाणी तीर की भाँति हृदय को बेधती है और अपनों को भी पराया बना देती है। कौआ और कोयल दोनों काले होते हैं, किंतु कौए की 'काँव-काँव' किसी को नहीं सुहाती, जबकि कोयल की मधुर कूक सबके मन को भाती है। तुलसीदास जी ने सही कहा है-

'वशीकरण एक मंत्र है, तज दे वचन कठोर।

तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर ॥' 

व्यवहार कुशल व्यक्ति सदैव यथोचित वाणी में समयानुसार बात करता है। अपने घर आए मेहमान का यदि मीठी वाणी से स्वागत करत हैं तो सामान्य-सा भोजन भी उसे प्रसन्नता से भर देता है। इसके विपूरीत अनेकानेक स्वादिष्ट व्यंजनों की व्यवस्था तो आपन कर दी, लेकिन कुछ कडवी-कठोर बात कह दी तो सारा किया-धरा चौपट हो जाता है। वाणी का संयम एक बहुत बड़ा गुण है। अमर्यादित वाणी के दुष्परिणाम से बचना संभव नहीं होता। द्रौपदी के कड़वे वचन दुर्योधन के अंतर में शूल-से गड़ गए, जो महाभारत के युद्ध के रूप में सामने आए। तलवार के घाव समय के साथ भर जाते हैं, किन्तु वाणी के घाव आजीवन चुभन देते रहत है। वाणी का महत्त्व समझकर हमें कबीरदास जी के वचनों का पालन करना चाहिए-

'ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।

औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होय॥'