जीवन में खेलों का महत्त्व 
Jeevan mein Khelon ka Mahatva 


'शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्'-अर्थात् सभी धर्मों का मूल साधन शरीर है। शरीर यदि स्वस्थ होगा तो हम सभी कर्तव्यों का निर्वाह भली भाँति करने में सक्षम होंगे। शारीरिक स्वास्थ्य का प्रमुख आधार है-खेल। खेलों से शरीर में स्फूर्ति, ऊर्जा, उत्साह तो आता ही है खेलों से हममें सहयोग, धैर्य, नेतृत्व, त्वरित निर्णय लेने की शक्ति जैसे गुणों का भी विकास होता है। खेलों से 'खेल-भावना' विकसित होती है जो जीवन की विषम परिस्थितियों में भी हमें संतुलित बनाए रखती है। खेलों की हार-जीत हममें दुख-सुख में समभाव बनाए रखने की सामर्थ्य पैदा कर देती है। साथियों के प्रति स्नेह और एकता की भावना आती है। खेलना, मानव की मूल-प्रवृत्ति है। बच्चे खेल में भूख-प्यास, हर तकलीफ़ भूल जाते हैं। आनंद के अनंत स्रोत खेलों को जीवन का अभिन्न अंग बना लेने वाले शरीर, मन और मस्तिष्क से सबल होते हैं। वे अधिक अनुशासित, क्षमाशील, स्वाभिमानी और उदार-चित्त होते हैं। खेलों से शरीर की माँसपेशियाँ न केवल बलिष्ठ बनती हैं उनमें लचीलापन भी बना रहता है, जिससे बुढ़ापे में भी व्यक्ति चुस्त-दुरुस्त बना रहता है। रक्त-प्रवाह बढ़ने से प्रत्येक अंग को पोषण मिलता है और हममें रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। खेलों से लाभ ही लाभ है। अब पुरानी कहावत 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे ख़राब'-में कोई विश्वास नहीं रखता। खेलों का महत्त्व निर्विवादित है।