भारतीय गाँव
Indian Village


'है अपना भारतवर्ष कहाँ ?

वह बसा हमारे गाँवों में।' 

भारत की आत्मा गाँवों में ही बसती है। पंतजी ने भारत माँ के स्वरूप का सटीक चित्रण किया है-

'खेतों में फैला है आँचल, 

धूल भरा मैल से कुंतल,

भारत माता ग्रामवासिनी।' 

जिस देश की लगभग 70 प्रतिशत जनता आज भी गाँवों से जुड़ी हो, वहाँ के सच्चे स्वरूप को उसके गाँवों से ही जाना जा सकता है। आई.टी.क्षेत्र हो या अन्य उद्योग इनकी प्रगति भारत को आज भी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं ला सकी है। आज भी पिछड़े देशों में हमारी गणना होती है। कारण है-हमारे गाँव। जहाँ का किसान आज भी हाड़तोड़ मेहनत के बाद दो जून रोटी नहीं जुटा पाता। सिंचाई के लिए वर्षा की कपा पर निर्भर रहने को विवश है। खाद-बीज के लिए लिया ऋण कभी अनावृष्टि तो कभी आतवृष्टि के कारण वह चुका नहीं पाता। आत्महत्या करने को जहाँ किसान मजबूर हों, न सड़कें हों, न पक्के घर, न बिजली, न पानी की व्यवस्था-उस देश की समृद्धि पर गाँवों की स्थिति ग्रहण जैसी है। अपने अधिकारों से अनजान, अशिक्षित किसाना का शोषण आज भी जारी है। पंजाब, हरियाणा जैसे गिने-चुने प्रदेशों के गाँवों में थोड़ी-बहुत खुशहाली आई है, कितु उडान बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तो गाँवों का यह हाल है कि लोग वहाँ से पलायन करके शहरों में जा बसने को मजबूर है। सरकार के साथ हम सबको अपने गाँवों की दशा सुधारने में योगदान देना होगा। ए.आई.आई.एम. से निकले कुछ युवकों ने लाखों की नौकरी छोड़कर ग्रामीण-उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। उन गाँवों को हर दृष्टि से आत्म-निर्भर ही नहीं शिक्षित करने और अंधविश्वासों, रूढ़ियों से मुक्त करने में सफलता पाई है। शहरी जीवन के तनावों से मुक्त एक संतुष्ट, सुखी, शांत जीवन जीवन गाँवों में ही जिया जा सकता है। भारतीय संस्कृति यदि आज भी बची है तो वह हमारे गाँवों में ही है।