विज्ञापन की दुनिया
Vigyapan ki Duniya


'विज्ञापनों की आज चारों ओर होड़ है, 

नहाने से लेकर सोने तक में लगी हुई दौड़ है। 

आओ विज्ञापनों के मर्म को जाने,

और बुद्धि के अनुसार इनका कहा मानें।' 

आज के उपभोक्ता-युग में विज्ञापनों का महत्त्व बढ़ता ही जा रहा है। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जो वस्तु बार-बार हमारी आखा या कानों को दिखाई-सनाई देती है उस पर हमारा विश्वास दृढ़ होता जाता है। विज्ञापन बनाने वाले इस तथ्य को ध्यान म रखकर अपनी वस्तु की खबियों को बढ़ा-चढाकर एवं उसे आकर्षक रूप प्रदान करके प्रस्तुत करते हैं जिससे उपभोक्ता में उस खरीदने की चाह पैदा हो। कभी-कभी तो विज्ञापन इतने प्रभावी होते हैं कि लोग आवश्यकता ना होते हुए भी उन्हें खरीदने पर मजबूर हो जाते हैं। विज्ञापन एक कला है और इस कला में माहिर लोग आज धन और प्रतिष्ठा दोनों प्राप्त कर रहे हैं। वज्ञापन द्वारा वस्तु की गुणवत्ता से विक्रेता को परिचित करवाना उसका उद्देश्य होता है किंतु आज कई वस्तुओं के विज्ञापन नामूक आर झूठ का पुलिंदा होते हैं। इनके झांसे में आकर उपभोक्ता बहुत बार ठगा भी जाता है। इसी प्रकार विज्ञापनों के नाम इ कपनियाँ अश्लीलता परोस कर भी लोगों को आकर्षित करने का प्रयत्न करती हैं। जिस प्रकार फिल्मों के लिए सैंसर उसी प्रकार विज्ञापनों की सत्यता और स्तर पर भी कोई नियंत्रण होना आवश्यक है तभी विज्ञापन हमारे लिए उपयोगी और महत्त्वपूर्ण बन पाएँगे।