समय का सदुपयोग करने की सीख देते हुए माँ का पुत्री को पत्र। 

जग निवास 

6/12 राणा प्रताप बाग 

दिल्ली 

10 जनवरी 2014 

प्रिय मंजरी, 

शुभाशीष! यहाँ सब सकुशल हैं आशा है तुम्हारी पढ़ाई और टेनिस का अभ्यास ठीक चल रहा होगा। तुम्हारी सहेली रंजना अपनी बहन की शादी में जब यहाँ आई थी तब हमसे भी मिलने आई। उसी से ज्ञात हुआ कि आजकल तुम टेनिस अभ्यास के लिए नहीं जा रही हो। शाम को जो विशेष कक्षाएँ होती हैं, उनमें भी तुम नियमित रूप से नहीं जा रही हो। कक्षा में भी पढ़ाई के समय तुम अपनी सहेली श्यामली के साथ गप्पे मारती रहती हो। इस बात पर कई बार अध्यापिकाओं से डाँट भी खा चुकी हो। देर रात तक ताश खेलती हो और सुबह देर से उठती हो। मंजरी, तुम जानती हो तुम्हारे लिए हमने क्या-क्या सपने संजोए हैं। अपने सा दूर देहरादून के सबसे अच्छे विद्यालय में इसलिए भेजा था कि तुम्हारा व्यक्तित्व निखरे। छात्रावास के अनुशासित जीवन में तुम समय का सही उपयोग कर सको। तुम्हारे टेनिस प्रशिक्षक को भी तुमसे बहुत आशाएँ हैं। गप्पों और ताश खेलने में समय व्यर्थ मत गवाओ। तुम तो हमारी रानी बेटी हो। मेरी बातों पर गंभीरता से विचार करना। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम समय के महत्त्व को समझोगी। जो बीत गया सो बीत गया। 'जब जागे तब सवेरा।' 

पिताजी तुम्हें प्यार और आशीर्वाद भेज रहे हैं। पत्र जल्दी लिखना।

तुम्हारी

अम्मा