नैतिक मूल्यों के महत्त्व को बताते हुए अपने पुत्र/पुत्री को पत्र। 

24, बंगलो रोड 

दिल्ली 

15 जनवरी 2014 

प्रिय शैलेश, 

शुभाशीष! आशा है अब तक तुम्हारी परीक्षाएँ समाप्त हो चुकी होंगी और तुमने अपना श्रेष्ठतुम देने का प्रयल भी किया होगा। हमेशा तुम्हारा परिणाम मेरी अपेक्षाओं से अधिक ही रहता है और मुझे इस बात पर गर्व भी होता है। इसी तरह तुम लगन से पढ़ते रहे तो निश्चित ही जीवन में ऊँचे मुकाम पर पहुँच जाओगे। किन्तु तुमसे मेरी अपेक्षाएँ कुछ भिन्न हैं। मैं तुम्हें सफल व्यक्ति ही नहीं एक अच्छे इंसान के रूप में देखना चाहता हूँ। तुमसे कुछ छिपा नहीं रहा है, तुमने देखा है कि मेरा जीवन संघर्षों से भरा रहा है। हर वर्ष के तबादलों और समय पर तरक्की नहीं मिलने से घर में सभी को परेशानी झेलनी पड़ी है; लेकिन हम सबके जीवन में जो सुख-शांति और संतोष रहा है-वह अमूल्य है। मैं चाहूँगा कि तुम भी नैतिक मूल्यों से कभी समझौता नहीं करो। धन से कहीं अधिक मूल्यवान होते हैं नैतिक मूल्य, क्योंकि इन्हें अपनाकर जो सुख-शांति हमें प्राप्त होती है, वह करोड़ों रुपए नहीं दे सकते। धन और उच्च पद प्राप्त होने पर मिलने वाला सम्मान भी उस सम्मान और श्रद्धा के सामने तुच्छ है जो एक सच्चे, ईमानदार, परोपकारी व्यक्ति को प्राप्त होता है। सत्य के मार्ग पर चलने वाले के जीवन में भले ही कठिनाइयाँ होती हैं, संघषा। की अग्नि में उसे तपना होता है किंतु ये सब उसे व्यक्तित्व को कुंदन-सा दमका देते हैं। उसके जीवन में निर्भयता, निश्चिंतता होती है जो उसे मानसिक रूप से ही नहीं शारीरिक रूप से भी सक्षम और सबल बनाती है। जिसकी अंतरात्मा उससे प्रसन्न हो उसे फ़िर बाहर से प्राप्त प्रसन्नता की आवश्यकता ही नहीं रहती। नैतिक-मूल्यों पर चलने वाला व्यक्ति इसीलिए आत्मविश्वास और उत्साह से भरा रहता है।

शैलेश मेरे बेटे, तुम्हें विरासत में धन-सम्पत्ति के नाम पर शायद कुछ अधिक न मिले किंतु जीवन-मूल्यों की वह अमूल्य थाती तुम्हे सौंप रहा हूँ जिन्होंने आजीवन हमें सिर ऊँचा करके चलने और सुखी-शांत जीवन जीने का वरदान दिया है। 

अम्मा और नेहा दीदी का प्यार और आशीर्वाद।

प्यार सहित 

तुम्हारा बापू