पिताजी को अपने अवकाश-कार्यक्रम के विषय में बताते हुए। 

सुभाष सदन छात्रावास 

विद्या-पीठ, नागपुर 

2 अक्टूबर 2014 

पूज्य पिताजी, 

सादर चरण-स्पर्श! आपका पत्र और 1000 रुपए का धनादेश प्राप्त हुआ। दशहरे की छुट्टियों में कन्याकुमारी जाने के लिए मैंने आपकी अनुमति से अपना नाम पहले ही लिखवा दिया था। कल पैसे भी जमा करवा दिए। धन्यवाद के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं जानता हूँ कि मेरी पढ़ाई के लिए आप और माँ एक तरह से अपना पेट काटकर मुझे पैसे भेजते हैं। कन्याकुमारी देखने के स्वप्न को साकार करने के लिए भी आपने दफ्तर में ओवरटाइम किया, यह बात भैया के पत्र से मुझे ज्ञात हुई। आपने पत्र में लिखा है कि यह कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने का आपकी ओर से उपहार है। इस अमूल्य उपहार को मैं सदा याद रखूगा। 

हम नागपुर से 6 अक्टूबर को चलेंगे और 8 अक्टूबर की प्रातः कन्याकुमारी पहँच जाएँगे। तीन महासागरों के महासंगम को अपनी आँखों से देखने की उत्सुकता तो है ही, वहाँ की विशाल चट्टान पर निर्मित विवेकानंद स्मारक को देखना तो स्वप्न सा प्रतीत हो रहा है। 9 अक्टूबर की प्रातः सूर्योदय और संध्या को सूर्यास्त देखने का कार्यक्रम है। हमारे साथ मेरे प्रिय गुरु शर्मा जी जा रहे हैं। उन्होंने वहाँ के जो चित्र दिखाए, उन्हें देखकर उस सौंदर्य से साक्षात्कार करने की लालसा और बढ़ गई है। 10 अक्टूबर को हम वापस नागपुर के लिए प्रातः ही निकल पड़ेंगे।

कन्याकुमारी से वापस आते ही मैं आपको पत्र लिखूगा। माँ को मेरा सादर चरण-स्पर्श और भैया को सप्रेम नमस्कार। 

आपका प्रिय

मन्नु