अश्लील विज्ञापनों, पोस्टरों एवं गीतों पर चिंता व्यक्त करते हुए।
प्रेषक
संगीता सिंघवानी
310, 'सी' ब्लॉक, अशोकविहार
दिल्ली
17 दिसंबर 20..
प्रतिष्ठा में
संपादक
दैनिक जागरण
नई दिल्ली
विषय : अश्लील विज्ञापनों, गीतों आदि पर 'पाठकनामा' स्तंभ में अपने विचार प्रकाशन हेतु।
महोदय,
निवेदन है कि आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं सामाजिक पतन की ओर बढ़ती वर्तमान युवा-पीढी को विज्ञापनों. गातों आदि में बढ़ती अश्लीलता के परिणामों से अवगत कराना अपना कर्तव्य समझती हूँ। इस संबंध में अपने विचार 'आपका पत्र’ स्तभ में प्रकाशित कराना चाहती हैं। एक जागरुक और संवेदनशील समाचार पत्र के संपादक से मैं आशा करती हूँ कि मेरे विचार आप अवश्य प्रकाशित करेंगे।
धन्यवाद
भवदीया
संगीता सिंघवानी
संलग्न : प्रकाशन हेतु विचार
हम कहाँ जा रहे हैं
विज्ञान यान पर चढ़कर आज हम मंगल ग्रह की यात्रा की तैयारी में जुटे हैं। कैसी विडंबना है कि धरती पर निरंतर हमारे कदम शन होते जा रहे हैं। यह अमंगल का संकेत है। आदिमानव जिस नग्नता और पशुता से ऊपर उठकर सभ्यता के ऊँचे शिखरों चा था, आज उसकी यह यात्रा पुनः उसी नग्नता और पशुता की ओर तेजी से फिसलती जा रही है। नारी एक सचेतन, संवदेनशील व्यक्तित्व नहीं उपभोक्ता की बिकाऊ वस्तु बना दी गई है। पुरुषों के उपयोग में आने वाली शेविंग क्रीम से लेकर कच्छे बनियान तक के विज्ञापनों में उसे निर्लज्जता से परोसा जा रहा है। उसकी त्वचा की कोमलता और गोरापन निखारने को उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य बना दिया गया है। रही-सही कसर भौंडे और अश्लील गीतों ने पूरी कर दी है। द्विअर्थी शब्दों की अश्लीलता से दस कदम आगे अब 'चिकनी चमेली' और 'शीला की जवानी' की बातें खुलकर सामने लाई जा रही है। समाज का तथाकथित आधुनिक संपन्न वर्ग इस स्वच्छंदता को स्वतंत्रता सिद्ध करने में जुटा है, जो उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। मनोवैज्ञानिक भी मानवीय विकारों को सहज-प्राकृतिक प्रमाणित करने में जुटे हैं। एक युग लग जाता है शिखर तक पहुँचने में, किंतु वहाँ से कुछ क्षणों में ही फिसलकर आप नीचे आ सकते हैं। बस एक बात कहना चाहती हूँ उस पर विचार करें-
'लुढ़कते हुए पत्थर को भी यह भ्रम होता है कि वह आगे बढ़ रहा है।'
संगीता सिंघवानी










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