दिल्ली के बिजली-संकट के कारण-निवारण संबंधी अपने विचारों के प्रकाशन हेतु।
प्रेषक
संदीप पाहूजा
3/17 राणा प्रताप बाग
दिल्ली
10 जून 20..
प्रतिष्ठा में
संपादक
दैनिक 'हिंदुस्तान'
नई दिल्ली
विषय : 'मेल बॉक्स' स्तंभ में बिजली संकट संबंधी विचार प्रकाशन हेतु।
महोदय,
कृपया निम्नलिखित विचार ‘मेल बॉक्स' स्तंभ से शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित करके अनुगृहीत करें।
धन्यवाद
भवदीय
संदीप पाहूजा
संलग्न : स्तंभ हेतु विचार
बिजली की आँख-मिचोली
दिल्ली चाहि-त्राहि कर रही है और विद्युत विभाग के अधिकारी अपने वातानुकूलित घरों दफ्तरों में चैन की बंसी बजा रहे हैं। अप्रैल से आजतक दिल्ली के कुछ अतिविशिष्ट इलाकों को छोड़कर सभी जगह बिजली की आँख-मिचौली का खेल चल रहा मीषण लू-गरमी की दोपहरी में तो कभी चैन की नींद लेने के समय आधी रात को विजली चार-चार घंटों के लिए कोजाती है। ना कोई पूर्व-सूचना दी जाती है और न ही पूछने पर कोई संतोषजनक उत्तर दिया जाता है। शिकायती पत्रों के ढेर रोज रद्दी की टोकरी के हवाले हो जाते हैं। हड़ताल-धरनों से भी किसी अधिकारी के कानों पर जूं नहीं रेंगती। क्या यही हैं ‘अच्छे दिन'? हमारे वीर जाँबाज़ सैनिकों को 'वीर-चक्र' 'विशिष्ट सेवा मेडल' दिए जाते हैं। मेरा सरकार से अनुरोध है कि की नानकर सभी आलोचनाओं, शिकायतों का सामना करने के लिए भी कोई 'चक्र' प्रदान करने की प्रथा प्रारंभ की जाए। इतनी सहनशीलता और कर्मठता का पुरस्कार तो इन्हें मिलना ही चाहिए।
जनता की आवाज़ कब तक अनसुनी की जाती रहेगी। जनता के विद्रोही तेवर हिंसक हो उठे उससे पूर्व उच्चाधिकारियों को ठोस और सख्त कदम उठाने होंगे। जनप्रतिनिधियों को भी सच्चे अर्थों में जन-प्रतिनिधि बनकर जनता को इस संकट से मुक्त करना चाहिए।
एक आम नागरिक
संदीप पाहूजा
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