शहर में व्याप्त गंदगी की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए किसी समाचार-पत्र के संपादक को पत्र। 


प्रेषक 

दुर्गेश माथुर 

312 / ए 3, रोहिणी 

नई दिल्ली 

12 अप्रैल 20.. 

प्रतिष्ठा में, 

संपादक 

दैनिक जागरण 

बहादुर शाह ज़फर मार्ग 

दिल्ली। 

विषय : 'पाठकनामा' स्तंभ में शहर में व्याप्त गंदगी की ओर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने हेतु विचार। 

महोदय, 

आपके लोकप्रिय समाचार पत्र के माध्यम से मैं देश की राजधानी में चारों ओर व्याप्त गंदगी की समस्या की ओर स्वयंसेवी संस्थाओं, सरकार एवं आम जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। 

कृपया मेरे विचार 'पाठकनामा' स्तंभ में प्रकाशित करें। 

धन्यवाद 

भवदीय 

दुर्गेश माथुर 

संलग्न : स्तंभ हेतु विचार


दिल्ली है या कूड़े का घर 

दिल्ली को सिंगापुर जितना साफ़-सुथरा और सुंदर बनाने का स्वप्न शेखचिल्ली की बातें बनकर रह गया है। कुछ अतिविशिष्ट लोगों के निवास स्थानों को छोड़कर शेष दिल्ली को 'कूड़े का घर' कहा जा सकता है। दीवारों पर पान की पीकें, सड़ती नालियाँ, जगह-जगह कूड़े के ढेर, पोस्टरों से पटी दीवारें, जिधर दृष्टि डालें गंदगी ही गंदगी। 'नगर-पालिका' नाम की संस्था के अस्तित्व के कोई प्रमाण नज़र नहीं आते। दिल्ली वालों तक को अपनी दिल्ली को स्वच्छ-सुंदर बनाए रखने की कोई चिंता नहीं। बी०एम०डब्ल्यू० गाड़ी से चिप्स के खाली लिफ़ाफ़े, पेय की बोतलें फेंकते देखकर आप आम अनपढ़ जनता से क्या अपेक्षा रख सकते हैं। हम किस जादू की छड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्यों नहीं सरकार गंदगी फैलाने वालों पर भारी जुर्माना करती? प्रधानमंत्री द्वारा चलाया 'स्वच्छ भारत अभियान' अभी नामी गिरामी लोगों की झाड़ लगाती तस्वीरों तक ही सीमित है असल तस्वीर हम रोज अपने आसपास देखते हैं। कब वो दिन आएगा जब रजिस्टरों में हाज़िर सफ़ाई कर्मचारी सचमुच दिल्ली के कूचे को साफ़ करने निकलेंगे। कब, आखिर कब और कैसे? सोचना होगा हम सब दिल्ली वालों को।

दुर्गेश माथुर