बच्चों में मोबाईल गेम आदि के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए संपादक को पत्र लिखिए-
प्रतिष्ठा में
संपादक
हिंदुस्तान
बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग
दिल्ली
विषय : बच्चों में कंप्यूटर, वीडियो गेम आदि के दुष्प्रभाव पर चिंता मेलबॉक्स में प्रकाशन हेतु
महोदय,
निम्नलिखित विचार अपने समाचार-पत्र के 'मेल बॉक्स' स्तंभ में छापने की कृपा करें।
भवदीय
सचिन कुमार
संलग्न : स्तंभ हेतु विचार
वह दौर, यह दौर
कभी कॉमिक्स का जबर्दस्त क्रेज़ था। बच्चे इससे मनोरंजन और ज्ञानार्जन, दोनों करते थे। उनके अंदर पाठयक्रम से इतर पढ़ने बाल पनपता था। लेकिन आज बच्चे कंप्यूटर पर हिंसक गेम्स और अवांछित सामग्री में उलझे हैं। खेल-तमाशे और बादरकोप गमशदा हैं और वीडियो गेम्स की धमक घर-घर तक है। एक समय था, जब रामायण, महाभारत टीवी पर देखने के लिए पूरा मुहल्ला जुटता था। अब तो मल्टीप्लेक्स थिएटरों का दौर है। दूरदर्शन निजी चैनलों की भीड़ में खो चुका है। सुख-दुःख की पाती अपनों तक पहुँचाने वाले लेटर बॉक्स, ई-मेल के समय में उपेक्षा के शिकार हैं। एक जमाने में पेंटर साइनबोर्ड बनाकर अच्छी-खासी कमाई कर लेते थे, तो आज फ्लेक्स प्रिंटिंग के आने से पेंटर या तो बमुश्किल गुजारा कर रहे हैं या व्यवसाय बदलने को मजबूर हैं। यह सब कहने का मतलब है कि वक्त तेजी से बदल रहा है, इसलिए वक्त के साथ चलने की ज़रूरत है और मजबूरी भी। तकनीक की रफ़्तार के आगे कल की बातें आज पुरानी हो चुकी हैं। मशीनी युग में विकास के साथ जज़्बात भी बने रहें, तो बेहतर होगा।
सचिन कुमार कश्यप
शामली
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