आगामी वर्ष से दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के हटाए जाने के पक्ष-विपक्ष में अपने विचार प्रकट करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।


नीलिमा धीमान 

133, इंदिरा नगर 

कानपुर 14 मार्च, 2014 

प्रिय सोनाली कैसी हो!

आशा है तुम हमेशा की तरह खश होगी। मैं भी परीक्षाएँ देकर पूरी तरह आराम फरमा रही हूँ। परीक्षाओं के तनाव के कारण बुरी तरह थक गई थी। अब यह सोच कर मन को बहुत शांति मिल रही है कि अगली बार हमारी वार्षिक परीक्षाएँ नहीं होंगी। जब नवीं की परीक्षाओं का इतना तनाव रहता है तो दसवीं का कितना तनाव रहता होगा। सच कहती हूँ कि लगता है, जैसे किसी ने भारी-भरकम टोकरा सिर से उतार कर नीचे रख दिया हो।

सोनाली, मुझे पाँचवीं से पहले के वे दिन अब भी बहुत भाते हैं जब हम पढ़ाई के साथ-साथ हर रोज खूब खेला करते थे। मेरे माता-पिता मेरे लिए कभी चिड़ी-बल्ला, कभी लूडो, कभी पेंटिंग का सामान तो कभी मुझे संगीत सिखाने की कोशिशु किया करते थे। अब तो पता नहीं, उन्हें क्या हो गया है! हमेशा पढ़ाई-लिखाई के पीछे पड़े रहते हैं। वे हर साँस में नंबरों की बातें करते हैं। इससे मैं तनाव में रहने लगी हूँ। जिसने भी वार्षिक परीक्षाओं का हौव्वा हटाया है, उसे मैं हृदय से धन्यवाद देना चाहती हूँ। अब शायद मेरे माता-पिता कभी-कभी मुझे घुमा भी लाएँ। पहले तो यही कहा करते थे कि एक बार बारहवीं के पेपर दे लो फिर चाहे जहाँ घूम लेना। मुझे उम्मीद है कि इन छुट्टियों में कहीं-न-कहीं घूमने का कार्यक्रम जरूर बन जाएगा।

तुम भी घूमने जरूर जाना। वरना पूरी जिंदगी ऐसे ही किताबों में रुल जाएगी। मेरे यहाँ कब आ रही हो? 

तुम्हारी 

नीलिमा