भारत में हरित क्रांति 
Bharat me Harit Kranti


हरित क्रान्ति से अभिप्राय है – देश को अनाजों या खाद्य-पदार्थों की दृष्टि से सम्पन्न या आत्मनिर्भर बनाना। यह तथ्य है कि इस धरती पर मात्र भारत ही एक ऐसा देश है जिसे कृषि प्रधान देश कहा जा सकता है। लेकिन यही देश जब विदेशी आक्रमणों के कारण, जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण, समय के परिवर्तन के साथ सिंचाई आदि की उचित व्यवस्था न हो सकने के कारण, नवीनतम उपयोगी औजारों व अन्य साधनों के प्रयोग न हो सकने के कारण, तथा विदेशी शासकों की सोची-समझी राजनीति व कुचालों का शिकार होने के कारण कई बार अकाल का शिकार हुआ तथा उसके भूखों मरने की नौबत आने लगी तब देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात सोची जाने लगी और एक नए युग का सूत्रपात हुआ-हरित क्रान्ति लाने का युग। तभी हरित क्रान्ति ने शीघ्रता से चारों ओर फैलकर देश को हरा-भरा बना दिया, । अर्थात् खाद्य-अनाजों के बारे में देश को पूर्णतया आत्मनिर्भर कर दिया।


हरित क्रान्ति ने भारत की खाद्य समस्या का समाधान तो किया है, साथ ही किसानों के जीवन को भी एकदम बदल दिया अर्थात् उनकी निर्धनता दूर कर दी। छोटे-बड़े सभी खेतिहर किसान समृद्धि और सुख का द्वार देख पाने में सफल हो गए। सुख-सुविधाएं प्राप्त कर जब किसानों का उत्साह बढ़ा तो उन्होंने दालें, तिलहन, ईख तथा हरे चारे आदि को अधिक मात्रा में उगाना आरम्भ कर दिया। हरित क्रान्ति लाने में जहां एक ओर खेतिहर किसानों का हाथ है, वहां दूसरी ओर नए-नए अनुसंधान और प्रयोग में लगी सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं का भी बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने उन्नत किस्म के बीजों के विकास के साथ-साथ खेतों की मिट्टी का निरीक्षण-परीक्षण कर यह भी बताया कि किस मिट्टी में कौन सा बीज बोने से अधिक लाभ होगा। नए-नए कीटनाशकों व खादों का उचित उपयोग एवं प्रयोग करना भी बताया।


इस हरित क्रान्ति को बनाए रखने के लिए आज भी कई प्रकार के अनुसंधान व प्रयोग हो रहे हैं। बीजों का विकास जारी है। यही प्रयोग व अनुसंधान के कार्य निरन्तर होते रहे तभी हरित क्रान्ति के भविष्य को उज्ज्वल माना जा सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो परिणाम यह होगा कि हम पुनः खाद्यान्न व खाद्य पदार्थों के लिए विदेशियों पर निर्भर हो जाएंगे। जिसका परिणाम होगा भूखे मरने की नौबत या विदेशियों की दासता अपनाना। अतः हमें हरित क्रान्ति को निरन्तर बनाए रखना होगा।