मदर टेरेसा 
Mother Teresa 

मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया में हुआ था। उनके पिता एक साधारण कर्मचारी थे। टेरेसा को बचपन से ही ईसाई धर्म तथा उसके प्रचारकों द्वारा किए जा रहे सेवा कार्य, में पूरी रूचि थी। उन्होंने अपनी किशोरावस्था में पढ़ा था कि भारत के दार्जिलिंग नामक नगर में ईसाई मिशनरियां सेवा कार्य पूरी तत्परता से कर रही हैं। अत: वह 18 वर्ष की आयु में 'नन' (भिक्षुणी) बन कर भारत आकर ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाये जा रहे सेवा-कार्यों से जुड़ गईं। साथ ही कलकत्ता स्थित सेंट मेरी हाई स्कूल में अध्यापन कार्य भी करने लगीं। शायद 10 सितम्बर, 1946 की शाम को वह आत्मप्रेरणा से कलकत्ता की झुग्गी-झोंपड़ियों में सेवा-कार्य के लिए चल पड़ी और इस प्रकार निर्धनों और बेसहारा लोगों की बस्ती में उन्होंने अपना पहला विद्यालय खोला।


एक बार उन्होंने कलकत्ता के एक अस्पताल के बाहर एक ऐसी नारी को देखा, जिसे कीड़ों तथा चूहों ने बुरी तरह जगह-जगह कुतर डाला था। उन्होंने उस नारी की तब तक देखभाल की, जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो गई। मदर टेरेसा ने अपने किए गए कार्य से संतोष पाकर यह निर्णय लिया कि वे ऐसे लोगों की सेवा करेंगी. जो मृत्यु के निकट होते हैं ताकि मृत्यु से पूर्व उन्हें ऐसा आभास न हो पाए कि कोई उनकी खबर लेने वाला नहीं है। उनकी प्रसिद्धि को देख कर इन्हें कलकत्ता नगर निगम ने मलाती (जगदीश चन्द्र बसु मार्ग) रोड पर, एक स्थान प्रदान किया ताकि घने क्षेत्र में वह और अधिक तत्परता के साथ अपना कार्य कर सकें। यही वह स्थान है जहां सर्वप्रथम 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' का कार्यालय खोला गया तथा मदर टेरेसा अनाथों की सहायिका तथा अपंग-अपाहिजों की संरक्षिका बन गई।


मदर टेरेसा द्वारा किए गए सेवा-कार्यों का अनुकरण उन धर्माचार्यों, महंतों तथा साधु-सन्तों को भी करना चाहिए, जिनके आश्रमों में पैसे की तो कोई कमी नहीं है, किन्तु उसका उपयोग आश्रमों की अति सुन्दर और विशाल भवन बनाने के लिए किया जाता है जो आश्रम की प्रसिद्धी में सहायक बन सके। मदर टेरेसा द्वारा बनाई गई इमारतों में बसते थे दरिद्रनारायण, असहाय और बेबस लोग। काश ! हमारे देश के सेवाधर्मी लोग भी मदर टेरेसा का अनुकरण करते।


मदर टेरेसा का यश सारा विश्व गाता है। उनका सेवा का साम्राज्य बहुत विस्तृत था। संसार के कई देशों में उनके कार्यकर्ता सक्रिय हैं। उन्होंने मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना सन् 1950 में की। तब से लेकर आज तक संसार के 244 केंद्रों में उनके सेवा कार्य स्थापित हो चुके हैं। इन केंद्रों में 3000 सिस्टर्स तथा मदर कार्यरत हैं। हजारों लोग इनके मिशन में जुड़े हुए हैं, जो बिना किसी वेतन के सेवा कार्य करते हैं। भारत में मदर टेरेसा द्वारा स्थापित 215 चिकित्सालयों में लगभग 10 लाख से अधिक लोगों की चिकित्सा प्रायः मुफ्त की जाती है।


मदर टेरेसा का कार्यक्षेत्र गंदी बस्तियों में जाकर सेवा कार्य था। उन्होंने ससार के कई नगरों में करीब 140 स्कूल खोले ताकि बच्चों को सही शिक्षा दी जा सके। इन 140 स्कूलों में से 80 स्कूल तो केवल भारत में हैं। मिशनरीज ऑफ चैरिटी के 60,000 लोगों को मुफ्त भोजन कराया जाता है। अनाथ बच्चों के पालन-पोषण के लिए 70 केंद्र स्थापित किए गए हैं। वद्ध लोगों की देखभाल के लिए 81 वृद्धाश्रमों की देखभाल मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी करती है। प्रतिदिन 15 लाख रुपये की दवाईयां गरीबों में बांटी जाती हैं। इस संस्था को किसी प्रकार की राजकीय सहायता नहीं प्राप्त होती। कलकत्ता में कालीघाट के समीप बना 'निर्मल हृदय' और 'फर्स्ट लव' नामक संस्था में वृद्धों की सेवा-सुश्रुषा की जाती है जहाँ लगभग 45000 व्यक्ति रहते हैं।


अप्रैल, 1962 में तत्कालीन राष्ट्रपतिजी ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया था। इसके पश्चात् फिलीपाइन सरकार की ओर से उन्हें 10,000 डाल का मेगासायता पुरुस्कार प्रदान किया गया। इस धनराशि से उन्होंने आगरा में कुष्ठाश्रम बनवाया। सन् 1964 में जब पोप भारत आए थे, तो उन्होंने अपनी कार मदर टेरेसा को भेंट कर दी थी। मदर ने उस कार की नीलामी 59930 डालर में करके कुष्ठ रोगियों की एक बस्ती बसाई, ताकि ऐसे लोगों की चिकित्सा और सही देखभाल की जा सके। मदर टेरेसा को भारत रत्न की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया गया। वह पुरस्कार से ज्यादा महत्त्व अपने सेवा-कार्यों को देती थी। उनके सेवा-कार्यों से निर्धन बेसहारा लोग लाभान्वित हुए।


दीन-दुखियों की सेवा में अपना जीवन लगाने वाली और नोबेल पुरस्कार तथा भारत रत्न सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित 87-वर्षीय मदर टेरेसा का निधन 5 सितम्बर, 1997 को कलकत्ता स्थित मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के मुख्यालय में गत साढे नौ बजे हो गया। उनकी मृत्यु का समाचार फैलते ही संसार शोकाकुल हो उठा। संसार के अनेक देशों ने उनकी मृत्यु पर शोक संदेश भेजे तथा दुःख प्रकट किया।