रक्षाबंधन 
Rakshabandhan


रक्षाबंधन भारत में मनाया जाने वाला एक पवित्र त्योहार है। वैसे तो यह हिन्दुओं का त्योहार है परन्तु सादगी पवित्रता तथा इसकी मूल भावना से आकर्षित हो सभी धर्म और संप्रदाय के लोग इसे मनाने लगे हैं। रक्षाबंधन भाई और बहन का त्योहार है। . अपने आप में अनूठा यह पर्व पूरे विश्व में केवल भारतवंशी ही मनाते हैं। यह पर्व भारत की सभ्यता, संस्कृति तथा मूल्यों एवं आदर्शों से हमारे जुड़ाव को प्रदर्शित करता है। रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई-बहन नहा-धोकर साफ कपड़े पहनते हैं और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं। परिवार के बड़े-बुजुर्ग ईश्वर से घर की खुशहाली को बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं। उसके बाद बहनें अपने भाइयों की आरती करती हैं, उन्हें तिलक लगाती हैं तथा उनकी कलाई पर राखी बाँधती हैं। बदले में भाई बहन को कुछ उपहार देते हैं। वास्तव में रक्षा सूत्र बाँधकर बहनें भाई के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की प्रार्थना तथा उसके दीर्घायु होने की मंगल कामना करती हैं और भाई भी बहनों के मान-सम्मान एंव खुशी की रक्षा करने की प्रतिज्ञा लेते हैं। 


भारत में तो न जाने कितने ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जब भाइयों और बहनों ने एक दूसरे की खुशी तथा मान के लिए अपने सुख का ख्याल नहीं किया। भाई-बहन का प्रेम है ही इतना पवित्र कि उसे किसी प्रकार के छल, प्रदर्शन या दिखावे की आवश्यकता नहीं है। यही कारण है कि रक्षाबंधन अत्यंत सादगी से मनाया जाने वाला त्योहार है। किसी प्रकार का कोलाहल इस त्योहार में नहीं पाया जाता है, अपितु वातावरण में एक सुगंध सी छाई रहती है। रास्ते पर चलने वाले हर भाई की कलाई पर बँधी राखी देख मन पवित्र भावनाओं से भर जाता है। रिश्तों की यह भीनी सी महक हमारे जीवन को सुवासित करती है। भाई-बहन के प्रेम की डोर जहाँ पूरे परिवार को जोड़े रखने में सहायक है, वहीं रक्षाबंधन पारिवारिक और सामाजिक भाइचारे को सुदृढ़ करता है। यह पर्व हमारे देश में कब से मनाया जा रहा है, इसकी तो कोई निश्चित तिथि हमें ज्ञात नहीं है परंतु कहा जाता है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने अपने राज्य तथा आपने सम्मान की रक्षा के लिए दिल्ली के बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर सहायता माँगी थी और हुमायूँ उनकी रक्षा के लिए चल पड़े थे। इस कथा से यह पता चलता है कि रक्षाबंधन का प्रचलन तब भी रहा होगा और राखी की महत्ता भी।


रक्षाबंधन से पहले विभिन्न दुकानें राखियों से सज जाती हैं, राखी के कार्ड भी बिकने लगते हैं तथा बहनों को दिए जाने वाले लुभावने उपहार भाइयों को दुकानों की तरफ खींचकर ले आते हैं। हमारे देश में मुँहबोले भाई तथा मुँहबोली बहनें भी कम नहीं हैं। जिनके अपने भाई या बहन नहीं होते वे किसी और को बहन या भाई बनाकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं। इस प्रकार राखी के ये पावन धागे नए रिश्तों को भी जन्म देते हैं और दो निर्मल हृदयों को जीवन पर्यंत कभी न टूटने वाले अटूट बंधन में बाँध देते हैं ।