असफलता ही सफलता की सीढ़ी है
Asafalta hi Safalta ki Sidhi Hai
Essay # 1
इसका अर्थ यह है कि असफलताओं को पार करके ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हमें असफलता से धैर्य नहीं खोना चाहिए। यदि हम किसी काम को करने में सफल न हो सकें तो भी हमें अपना हृदय मज़बूत रखना चाहिए। असफलताएं हमें हमारी कमियों से परिचित करवाती हैं। ये हमें उन कमियों को दूर करने में मदद करती हैं। हमें अपनी असफलता के कारण पता लगवा कर उन्हें दूर करना चाहिए। इससे व्यक्ति बुद्धिमान बनता है। वह भविष्य में उन गलतियों को नहीं दोहराता। इसमें कोई शक नहीं कि असफलता सदा दु:ख देती है। किन्तु इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसे हार का सामना न करना पड़ा हो। असफलता व्यक्ति में सहनशीलता तथा गंभीरता पैदा करती है। वह उसके अन्दर छुपे हुए गुणों को बाहर निकालती है। सफलता तथा असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह बारी-बारी व्यक्ति के जीवन में आते हैं। जहां गुलाब होगा, कांटे भी वहीं होंगे। असफलता से चाहे व्यक्ति खेल हार जाए, किन्तु उसे हृदय नहीं हारना चाहिए। जो हृदय से हार जाते हैं तथा कोशिश करना छोड़ देते हैं, वे जीवन में सदा के लिए पिछड़ जाते हैं। हारने के बाद प्राप्त हुई जीत का अलग ही आनन्द होता है। इसलिए असफलता को दुश्मन नहीं बल्कि असफलता को दोस्त ही समझना चाहिए।
असफलता ही सफलता की कुंजी है
Asafalta hi Safalta ki Kunji hai
Essay # 2
मनुष्य का जीवन कर्म-प्रधान है। मनुष्य को निष्काम भाव से सफलता-असफलता की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना है। आशा या निराशा के चक्र में फँसे बिना उसे लगातार कर्तव्यनिष्ठ बना रहना चाहिए। किसी भी कर्त्तव्य की पूर्णता पर सफलता अथवा असफलता प्राप्त होती है। असफल व्यक्ति निराश हो जाता है, किन्तु मनीषियों ने असफलता को भी सफलता की कुंजी कहा है। असफल व्यक्ति अनुभव की सम्पत्ति अर्जित करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। जीवन में अनेक बार ऐसा होता है कि हम जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करते है, वह पूरा नहीं होता है। ऐसे अवसर पर सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया-सा लगता है और हम निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं। उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुनः प्रयत्न नहीं करते। ऐसे व्यक्ति का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। निराशा का अंधकार न केवल उसकी कर्म-शक्ति, बल्कि उसके समस्त जीवन को ही बँक लेता है। मनुष्य जीवन धारण करके कर्म-पथ से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। विघ्नबाधाओं की, सफलता-असफलता की तथा हानि-लाभ की चिंता किए बिना कर्तव्य के मार्ग पर चलते रहने में जो आनंद एवं उत्साह है, उसमें ही जीवन की सार्थकता है।
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