आप 8E, 520-A/1 गोविंद नगर, अंबाला शहर की संगीता रानी हैं। आप लाउडस्पीकरों के मनमाने प्रयोग को रोकने हेतु शिकायत करते हए 'पंजाब केसरी' अंबाला छावनी के संपादक को पत्र लिखिए।
संगीता रानी,
520-A/1, गोविंद नगर,
वर्मा आयल कंपनी के पीछे,
निकट मंजी साहेब गुरुद्वारा
अंबाला शहर।
26.10.20xx
सेवा में,
संपादक महोदय,
पंजाब केसरी,
अंबाला छावनी।
विषय: परीक्षा के दिनों में लाउडस्पीकरों के शोर पर प्रतिबंध लगाने हेतु।
महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र 'पंजाब केसरी' के माध्यम से अपनी समस्या संबंधित अधिकारियों तक पहुँचाना चाहता हूँ। कृपया मेरे विचारों को ‘पाठकों के पत्र' नामक स्तंभ में प्रकाशित करने की कृपा करें।
आजकल के इस युग में लाउडस्पीकर का प्रयोग लोग अपनी इच्छानुसार करते हैं। जबकि लाउडस्पीकर के प्रयोग हेतु एक नियमावली बनी हुई है। जिसके आधार पर लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पाबंदी लगाई जा सकती है। आम जनता को इन नियमों की कोई जानकारी नहीं होती है। लोग अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार लाउडस्पीकर लगाकर रात-भर गाते-बजाते हैं। प्रभु का भजन करते हैं, सांस्कृतिक संध्याओं, माँ भगवती का जागरण, मंदिर में कथा-कीर्तन. मसजिद में नमाज़ अदा करते हैं। गुरुद्वारों में पूजा-पाठ करते हैं। विवाह-शादियों पर नाचते-गाते रहते हैं।
अपने कार्यक्रम की खुशी या गम में व्यक्ति दूसरे के सुख-दुःख की परवाह नहीं करता। रामलीला के दिनों में रामलीला-स्थल के पास रहने वाले छात्रों की क्या दुर्दशा होती है यह बात वे छात्र ही जानते हैं जिनके घर के पास मंदिर, मस्जिद तथा गरुद्वारे होते हैं। ऐसे लोगों को चाहे-अनचाहे सभी धर्मों की रामकहानी सुननी पड़ती है। ऐसे स्थल के नजदीक रहने वाले निवासी यह ध्यान ही नहीं देते कि क्या बज रहा है? अधिक शोर में रहने वाले तनावग्रस्त जीवन जीते हैं। लाउडस्पीकर के शोर को कम किया जा सकता है। जैसे-आम जनता को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों की जानकारी होनी चाहिए। लाउडस्पीकर प्रायः किसी न किसी उत्सव पर ही प्रयोग किए जाते हैं। आयोजकों को इनका प्रयोग करते समय अपनी सीमाओं में रहना चाहिए। आम आदमी के जीवन में किसी प्रकार का विघ्न न डालें। आवाज़ का इस सीमा में प्रयोग करें कि आयोजन-स्थल से बाहर न जाए। प्रशासन को चाहिए कि धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, व्यक्तिगत उत्सव पर प्रयोग में आने वाले स्थलों पर निगरानी रखें तथा जो नियमों का उल्लंघन करें उन्हें तुरंत दंडित करने की व्यवस्था की जाए। शोर के विरुद्ध आस-पास की जनता को ही विद्रोह कर देना चाहिए। जैसे ही पड़ोसी काल हो उसके लाउडस्पीकर की ध्वनि बढ़े तुरंत आस-पास के निवासियों को हस्तक्षेप करना चाहिए। यह कार्य धैर्य. शलता तथा कोमलता का है। अतः जनता ही अपने हस्तक्षेप तथा दबाव के द्वारा ऐसे आयोजनों पर अंकुश लगा सकती है। भाई-चारा, प्रेम और सौहार्द तथा समितियों के निर्माण द्वारा इन लाउडस्पीकरों के शोर पर काबू पाया जा सकता है।
सधन्यवाद!
भवदीया
संगीता रानी
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