बुरी संगति से मनाही के लिए बेटे को।


कला-निकेतन, छपरा

27-1-1992 


प्रिय मोहन,

शुभाशीर्वाद !

आज पटने से मेरे एक मित्र यहाँ मुझसे मिलने आये और उन्होंने बताया कि तुम इन दिनों बुरी संगति में फँस गये हो। अभी तुम इतने मुलायम हो कि किसी भी फरमे में ढाले जा सकते हो। तुम जानते हो कि मनुष्य अपनी संगति से पहचाना जाता है-'A man is known by the company he keeps." यदि बुरे मनुष्यों के साथ हर क्षण रहोगे, तो उनके विचारों से प्रभावित हुए बिना तुम रह नहीं सकते। काजल की कोठरी में चाहे कोई कितना भी बचकर क्यों न जाय, रेख तो लग ही जाती है। एक विदेशी कहावत है- "यदि तुम सदैव उनके साथ होगे जो लँगड़े हैं, तो तुम स्वयं लँगड़ाना सीख जाओगे।" गोस्वामी तुलसीदास ने ठीक ही कहा है-"को न कुसंगति पाइ नसाई।"

अतः एक पिता के नाते मेरा कर्त्तव्य है कि मैं इसी समय तुम्हें सचेत कर दूं। अभी कुछ बिगड़ा नहीं है। मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि तुम बुरे व्यक्तियों का साथ छोड़कर अपना सारा समय अध्ययन में लगाओगे।

बहुत-बहुत स्नेह के साथ

तुम्हारा पिता 

जनार्दन

पता-श्रीमोहन कुमार, दशम श्रेणी, क्रमांक 51,

राममोहन राय सेमिनरी, खजांची रोड, पटना-800004