अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत 
Ab Pachtaye Hot Kya, Jab Chidiya Chug Gai Khet

अवसर का स्वर्णरथ जब हमारे द्वार पर आ खड़ा होता है, तब हम हमेशा सचेत नहीं रहते हैं। अकसर ऐसा होता है कि जब अवसर दरवाजे पर दस्तके देता है, हम गहरी नींद में बेसध रहते हैं। अवसर चक जाने के बाद पश्चाताप की आग में जलने के सिवा कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाता। वस्तुतः, अवसर बार-बार नहीं आता। इसकी हर आहट के लिए मनुष्य को पहले से सतर्क रहना चाहिए, वरना बाद में केवल पछताना ही शेष रह जाता है।

आनेवाले हर अवसर के लिए हमें सर्वदा तैयार रहना चाहिए ताकि अवसर जब कभा हमारा दरवाजा खटखटाए हम अवसर के उपयोग के लिए सक्रिय हो जाये। गोस्वामी तुलसीदास ने ठीक ही लिखा है-

अवसर कौड़ी जो चुके, बहुरि दिए का लाख।

दइज न चन्दा देखिए, उरी कहा भरि पाख।। 

जब फसल नष्ट हो जाती है, तब वर्षा तनिक भी लाभकारी नहीं होती। इसी तरह, जब मारी फसल चिड़ियों का आहार बन जाय, तब रोने-धोने से कोई लाभ नहीं होता। पहले से ही फसल के बचाव के उपाय करने चाहिए। जो अवसर चूक जात हैं, उनका पूरा जीवन पछतावे में ही बीतता है।