करत-करत अभ्यास के, जडमति होत सुजान  
Karat Karat Abhyas ke, Jadmati hot Sujan

बुद्धि की मंदता एक सामान्य चिन्ता है। बहुत सारे लोग यह सोचकर दुःखी रहते हैं कि उनसे कोई काम अच्छी तरह नहीं हो सकता और वे अपनी मंद बुद्धि के कारण आजीवन असफल रहेंगे। वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। अभ्यास एक ऐसा साधन है जिसके सहारे कोई महामूर्ख भी पंडित बन सकता है। जिस प्रकार रस्सी की बार-बार रगड़ से पनघट के पत्थर पर भी निशान पड जाते हैं, उसी तरह बार-बार अभ्यास करने से बुद्धिशून्य व्यक्ति भी विद्वान बन सकते हैं।

कुशाग्र बुद्धि किसी पाठ को एक बार में ही याद कर लेती है। लेकिन, ऐसी कुशाग्र बुद्धि से सम्पन्न व्यक्ति भी पाठ को अपनी प्रखरता के अहंकार पर छोड़ दे, तो पाठ के विस्मृत होते देर न लगेगी। लेकिन मंद बुद्धि व्यक्ति पाठ को बार-बार पढ़कर इस तरह आत्मसात् कर सकता है कि वह कभी विस्मृत नहीं हो सकता। अभ्यास की इसी महत्ता को उक्त सूक्ति में रेखांकित किया गया है। सच तो यह है कि अभ्यास ही मस्तिष्क की तीक्ष्णता का केन्द्रीय तत्त्व है।