दैव-दैव आलसी पुकारा 
Dev Dev Aalasi Pukara


आलस्य उस व्याधि का नाम है, जो मनुष्य को अकर्मण्य बना देती है। आलसी के लिए, विकास के सारे मार्ग अवरुद्ध रहते है, वह कायर और परजीवी हो जाता है। संस्कृत की एक उक्ति में आलस्य को मानव-शरीर का अन्यतुम शत्रु घोषित किया गया है-

'आलस्यहि मनुष्यानां शरीरस्थो महान् रिपुः

आलस्य देश और समाज के लिए भी न धुलनेवाला संतापकारी संताप है। आलस्य का सबसे विलक्षण पक्ष यह है कि आलसी अपनी सम्पूर्ण कार्यशीलता को भाग्य के भरोसे छोड़ देता है। उनका मंत्र है-

अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।

दास मलूका कह गये, सबके दाता राम।। 

इस धारणा के समर्थक यह सोचकर हाथ-पैर नहीं हिलाते कि सबका निर्माता ईश्वर ही इस सृष्टि का नियंता है और उसकी प्रकृति में कोई व्यवधान उपस्थित करना समीचीन नहीं। लेकिन, वस्तुतः भाग्य पर भरोसा करनेवाले लोग अपनी ही कार्यनिष्ठा से विरत होने लगते हैं। भर्तृहरि ने ठीक ही कहा है कि उद्योगी पुरुष लक्ष्मी का उपार्जन करता है, परन्तु कायर भाग्य के सहारे बैठा रहता है। भाग्य और आलस्य को ठोकर मारकर अपने कर्तव्य-पथ पर दृढ़तापूर्वक जुट जानेवाले को ही जीवन में सफलता मिलती है।