अगर सफलता नहीं मिले, तो पुनः करो उद्योग 
Agar Safalta nahi Mile, to Punah karo Uddhyog

अधिकांश व्यक्ति जीवन-पथ पर एक-दो बार आ गये अवरोधों के कारण साहस खो बैठते हैं। असफल हो जाने पर एकदम हताश होकर बैठना उचित नहीं है। यदि एक बार सफलता नहीं मिले, तो बार-बार प्रयास करना चाहिए। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने इसी संदर्भ में संकेत दिया था कि यदि सफलता न मिले, तो मनुष्य को पुनः उद्योग करना चाहिए।

उद्यमी व्यक्ति के लिए सागर का असीम विस्तार भी समाप्त हो जाता है, हिमालय का शिखर भी बौना हो जाता है। मुहम्मद गोरी का अभियान पुनः-पुनः किये गये उद्यम का विलक्षण उदाहरण है। पृथ्वीराज चौहान पर उसने सोलह बार चढ़ाइयाँ की और हर बार असफल हुआ। लेकिन वह अपनी असफलता से निराश नहीं हो गया. सत्रहवीं बार उसके गले में सफलता की देवी ने जयमाला डाल दी। वह छोटा-सा मकड़ा किसी में भी प्रेरणा पूँक सकता है, जो बार-बार गिरकर भी दीवार पर चढ़ने से बाज नहीं आता। वस्तुतः, जीवन में सफलता की कोई स्वर्णिम कुंजी है तो वह उद्यम ही है। उद्यम से विधाता का विधान परिवर्तित हो जाता है। अतएव, एक बार सफल न होने पर मनुष्य को तब तक लगातार उद्योग करना चाहिए, जब तक सफलता की देवी उसका वरण न कर जाय।