साँच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप 
Saanch Barobar Tap Nahi, Jhuth Barobar Paap

जो कुछ अपनी नंगी आँखों से दिखाई देता है, बिना कुछ जोड़-घटाव किये व्यक्त कर दिया जाय, वही सत्य है। संसार के सभी महापुरुषों ने सत्य की महिमा का बखान किया है। हरिश्चन्द्र और युधिष्ठिर जैसे राजाओं को सत्यनिष्ठा के कारण ही गरिमा प्राप्त है। बहुत छोटा-सा शब्द है सत्य, लेकिन इसका पालन बहुत ही दुष्कर है। इसीलिए महात्मा कबीर ने कहा कि सच के समान तप नहीं है और झूठ के समान पाप नहीं है।

तपस्या की परम्परा हमारे देश में रही है। तपस्या में मनुष्य अपने-आपको तपाता है। तप से भी अधिक कष्ट, अधिक ताप सत्यपालन में झेलना पड़ता है। सत्य की रक्षा के लिए महाराज दशरथ को पुत्रवियोग में प्राण त्यागने पड़े। राजा हरिश्चन्द्र को चांडाल के यहाँ नौकरी करनी पड़ी। युधिष्ठिर को सत्य-मार्ग पर चलने के कारण ही अनेक विपदाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन इन सभी सत्यव्रतियों का आदर्श हमें यह शिक्षा देता है कि सत्य के मार्ग पर अडिग रहनेवाले लोग ही कीर्तिमान बने हैं। झूठ के पापपंक से बचते हुए सच की तपस्या करके ही मनुष्य संसार में अक्षय कीर्ति प्राप्त कर सकता है।