ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय 
Aisi Vani Boliye, Man ka Aapa Khoy

विधाता की ओर से मनुष्य को प्रदत्त सबसे अनमोल उपहार है, उसकी वाणी। यदि वाणी न होती, तो मनुष्य अपने अंतःस्थल के अवरुद्ध स्वरों को कैसे अभिव्यक्ति देता ? अपने मन के गुप्त अभिलेखों को व्यक्त करने के लिए वाणी से बेहतर साधन कोई नहीं। वाणी के द्वारा हम न केवल अपने मन की अतल गहराइयों के भाव व्यक्त करते हैं, अपितु अपने परिवेश को वाणी द्वारा ही सम्बोधित करते हैं। इसी कारण, संतों ने ऐसी वाणी बोलने का परामर्श दिया है जो औगे को शीतल करे और स्वयं को भी ठण्डक पहुँचाये।

सचमुच संसाररूपी इस कटुवृक्ष के दो अमृत तुल्य फल है-मरस प्रियवचन और सुसंगति। अतएव, ऐसी बातें बोलनी चाहिए जो दूसरों को सुख पहुँचाये। वाणी के बाण से घायल करने के लिए विधाता ने हमें वाणी नहीं दी है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी वाणी की मिठास का महत्त्व इंगित किया है-

तुलसी मीठे वचन ते, मुख उपजत चहुँ ओर ।

वशीकरण एक मंत्र है, तज दे वचन कठोर ।। 

वाणी के कारण ही पण्डित और मूर्ख, साधु और दुष्ट, सज्जन और दुर्जन की। पहचान होती है। इसी कारण, मन का अहंकार भूलकर मीठी वाणी बोलने का आग्रह कबीरदासजी ने किया है।