अन्तरिक्षयान 
Antrikshyan


वह मनुज, जिसका गगन में जा रहा है यान 

काँपते जिसके करों को देखकर परमाणु, 

खोलकर अपना हृदय गिरि, सिन्धु, भू, आकाश 

हैं सुना जिसको चुके निज गुह्यतुम इतिहास 

खुल गये परदे, रहा अब क्या यहाँ अज्ञेय?-–दिनकर


पटने से दिल्ली की यात्रा हम भले ही रेलगाड़ी से कर डालें, दिल्ली से लन्दन की यात्रा के लिए हम भले ही वायुयान का सहारा लें; किन्तु आज जब हमने चन्द्रलोक और मंगललोक की यात्राओं के लिए साहस बटोर लिया है, तब फिर हमें एक अतिद्भुत यान का निर्माण करना ही है। अब हजारों मील दूरी का प्रश्न नहीं, बल्कि लाखों मील (चाँद की दूरी-2 लाख 38 हजार 860 मील) दूरी का प्रश्न है।

बादलों के पार कौन-सी चंदन-चाँदनी का देश है, दूर-दूर से मुस्कुराहट बिखेरते तारों की दुनिया कैसी है, अब तक सुन्दरता और कल्पना की रंगीनी बिखेरनेवाले तथा सपनों की जाली बुननेवाले चाँद का रूपहला संसार कैसा है, ज्योतिष की पुस्तकों में वर्णित मंगल, बुध आदि ग्रहों का साम्राज्य कैसा है-यह सब जानने के लिए मानव का जिज्ञासु मन मचल उठा है। परीक्षणों की पगडंडियों से गुजरकर आज मानव चाँद पर छलांग मारकर पहुँच चुका है। इस कार्य के लिए उसे स्थलयान, जलयान, वायुयान जैसे मृदु-मंद-मंथर नहीं, वरन् ध्वनि-प्रकाश-वायु तक की गति को मात करनेवाला अतिक्षिप्र यान-अंतरिक्षयान चाहिए, जिसकी गति अट्ठारह हजार मील प्रतिघंटा से अधिक हो।

अन्तरिक्षयान के निर्माण में रूस और अमेरिका में होड़ लगी हुई है। सबसे पहले रूस ने 4 अक्टूबर, 1957 को स्पुतनिक छोड़ा। फिर 4 नवम्बर, 1957 को उसने अपने यान में 'लायका' नाम की प्रशिक्षिता कुतिया भेजी। 28 नवम्बर, 1959 को अमेरिका ने अपने अन्तरिक्षयान में दो बन्दर भेजे।

विज्ञान का सबसे बड़ा आश्चर्य रूसी राकेट 'ल्यूनिक-1, 2 जनवरी, 1959 को छोड़ा गया। यह चन्द्रमा के निकट से गुजरता हुआ एकदम आगे बढ़ गया और सूर्य की पकड़ में आकर उसकी परिक्रमा करनेवाला बन गया। इसके पूर्व कोई भी अन्तरिक्षयान पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण-शक्ति से मुक्त होकर बाहर नहीं जा सका था। फिर रूस ने 'ल्यूनिक-3' छोड़ा। 12 अप्रैल, 1961 को रूस ने 'वोस्तोक-1' छोड़ा जिसमें विश्व के सर्वप्रथम अन्तरिक्षयात्री मेजर यूरी एलेक्जीविच गगारिन बैठे थे। जब गगारिन अन्तरिक्षयात्रा करके लौटे थे, तब रूस में उनका कितना भव्य स्वागत हुआ था, इसे हम जानते हैं।

रूस ने 18 नवम्बर, 1965 ई0 को 'वोस्तोक-2' छोड़ा। इसमें कर्नल लियोनोव तथा कर्नल वेल्यायेव सवार थे। दोनों ने अन्तरिक्षयान द्वारा पृथ्वी की एक परिक्रमा समाप्त कर डाली। इसके पश्चात् दूसरी परिक्रमा में कर्नल लियोनोव अन्तरिक्षयान से बाहर निकले और उन्होंने अन्तरिक्ष में चहलकदमी शुरू की। धरि-धीरे वे अन्तरिक्ष में कूद पड़े। लम्बे खजूर-पेड़ से गिरने पर आदमी चकनाचूर हो जाता है, किन्तु इतनी ऊँचाई से लियोनोव गिरे भी नहीं, चकनाचूर होने की बात कौन कहे ! कारण, इतनी ऊँचाई पर पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति समाप्त हो जाती है और हर वस्तु भारहीन हो जाती है। अन्तरिक्ष में तैरनेवाले विश्व के सर्वप्रथम व्यक्ति है लियोनोव।

'वोस्तोक-6' में रूस की महिला वेलेन्तिना निकोलायेवा तेरेशकोवा चक्कर लगा आयीं। इस क्षेत्र में कभी रूस, कभी अमेरिका मैदान मारते आगे बढ़ते रहे। 21 दिसम्बर, 1968 को अमेरिका ने 'अपोलो-8' नामक अन्तरिक्षयान भेजा। इसने 10 बार पृथ्वी की परिक्रमा की और निर्धारित समय पर 27 दिसम्बर, 1968 को पृथ्वी पर लौट आया। इस अन्तरिक्षयान ने 5 लाख मील की यात्रा की। सबसे अधिक गति 24,200 मील प्रतिघंटा थी। इस खतरनाक यात्रा में फ्रैंक बोरमैन, जेम्स लावेल तथा विलियम ऐण्डर्स के अदम्य साहस की जितनी भी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है। 'अपोलो-9' में जेम्स डेविड, जेम्स स्काट तथा रसेल स्केल ने यात्रा की।

मई, 1969 ई0 में चन्द्रमा पर उतरने के शानदार नाटक का पूर्वाभिनय अन्तरिक्षयान 'अपोलो'-10' छोड़कर किया गया। इसके तीन यात्री (थोमस स्टाफोर्ड, जॉन यंग तथा यूजीन करनान) अन्तरिक्षयान को चन्द्र-कक्ष में ले गये। एक अन्तरिक्ष यात्री मूलयान को कक्ष में घुमाता रहा तथा अन्य दो यात्री चन्द्रयान में बैठकर उसे चन्द्रमा से केवल 9 मील की दूरी पर ले गये। इन यात्रियों ने 'अपोलो-11' के यात्रियों के उतरने के सम्भावित स्थानों का निकट से अध्ययन किया। चन्द्रयान को मूलयान से जोड़कर ये तीनों यात्री सकुशल पृथ्वी पर लौट आये।

16 जुलाई, 1969 ई. को सन्ध्या 7 बजकर 2 मिनट पर 'अपोलो-11' नामक अन्तरिक्षयान ने अमेरिका के केप कैनेडी से प्रस्थान किया। इसपर तीन यात्री सवार थे-नील एo आर्मस्ट्रांग, एडविन ई0 एल्ड्रिन और माइकेल कॉलिंस। भारतीय समय के अनुसार 1 बजकर 47 मिनट पर किसी अन्य ग्रह पर मानव ने प्रथम बार पदार्पण किया। असीम अन्तरिक्ष को भेदते हुए पृथ्वी से चार लाख किलोमीटर की दूरी तय करने में मनुष्य को 102 घंटे 45 मिनट 42 सेकेण्ड लगे। 21 जुलाई को 8 बजकर 27 मिनट प्रातःकाल आर्मस्ट्रांग ने अपने विजय-चरण चन्द्रतल पर रखे। यह मानव-इतिहास की सबसे बड़ी घटना थी। मानव-अनुसन्धान की सबसे बड़ी उपलब्धि के नायक आर्मस्ट्रांग ने अखिल विश्व से अनन्त शुभकामनाएँ प्राप्त की। आर्मस्ट्रांग ने वहाँ पहुँचकर जो अपनी सर्वप्रथम प्रतिक्रिया व्यक्त की, वह थी-"सुन्दर दृश्य है, सब-कुछ सुन्दर है।" आर्मस्ट्रांग के बीस मिनट बाद एल्ड्रिन चन्द्रतल पर उतरे। चन्द्रतल को 'नीरहीन शान्त समुद्र' की संज्ञा दी गयी।

दोनों यात्रियों ने बतलाया कि चाँद की जमीन बड़ी सख्त है। वहाँ की तुलना उनलोगों ने अमेरिका के पश्चिमी रेगिस्तान से की; चन्द्रतल पर अनगिनत ज्वालामुखी हैं। वहाँ से जो मिट्टी और चट्टानों के नमूने लाये गये, उनके अध्ययन से चन्द्रलोक के बारे में बहुत-सी नयी बातों की जानकारी मिली।

चन्द्रतल के 'भव्य एकान्त' में लगभग बाईस घंटे की चहलकदमी के बाद वहाँ से वे 22 जुलाई को 10 बजकर 27 मिनट पर विदा हुए। 24 जुलाई की रात्रि 10-20 बजे यह यान प्रशान्त महासागर में सकुशल उतर गया। इस अवसर पर इन यात्रियों को बधाई देने स्वयं राष्ट्रपति निक्सन पहुँच गये थे।

स्वo राष्ट्रपति कैनेडी ने 25 मई, 1961 ई0 को कहा था, "अमेरिका को इस दशाब्दी से पूर्व ही मानव को चन्द्रमा पर उतारने तथा उसे सकुशल पृथ्वी पर लौटाने का लक्ष्य निर्धारित करके पूरा कर दिखाना चाहिए।" राष्ट्रपति कैनेडी का स्वप्न साकार हुआ जब 22 जुलाई को चन्द्रयात्रियों ने एक धातुफलक चन्द्रतल पर छोड़ा, जिसमें लिखा था, "जुलाई, 1969 में पृथ्वी ग्रह से मानव चन्द्रमा के इस स्थान पर उतरे। हम यहाँ सारी मानव-जाति के लिए शान्ति की कामना लेकर आये"

Here men from the planet earth 

First set foot upon the moon 

July 1969 A. D. 

We come in space for

All mankind. 

19-20 नवम्बर, 1969 को दूसरी बार अपोलो-12 के दो अन्तरिक्षयात्री चार्ल्स कॉनराड तथा एलेन बीन साले एकतीस घंटे तक चाँद के तूफानी सागर का पर्यटन कर आये।

अब समय दूर नहीं है, जब मनुष्य चाँद की नगरी में स्वेच्छया सैर करेगा। इसलिए जापान की एक संस्था ने चाँद की भूमि के क्रय-विक्रय का अभी से ही व्यापार आरम्भ कर दिया है। अमेरिका की एक कम्पनी ने चाँद के वापसी टिकट का मूल्य पचास हजार डालर निर्धारित किया है। हमें त्रिपुरासुर के गगन-निर्मित भवन पर भले विश्वास न हो, किन्तु अब हमें वैज्ञानिक देवता पर विश्वास तो करना ही पड़ेगा।

इसके बाद 11 अप्रैल, 1970 ई0 को 'अपोलो-13' भेजा गया किन्तु विद्युतऑक्सीजन की खराबी के कारण चंद्रमा पर पहुँचे बिना ही इसे पृथ्वी पर उतर आना पड़ा। इसके बाद 'अपोलो-14' और '-15 चंद्रतल पर जाकर सकुशल पृथ्वी पर लौट आये। 1972 ई0 के अप्रैल महीने में 'अपोलो-16' रवाना हुआ। इस यान में कप्तान जॉन यंग, लफ्टिनेंट कर्नल चार्ल्स ड्यूक और लेफ्टिनेंट कमांडर टामस माटिंगले थे। यह यात्रा बड़ी सफल रही। ये यात्री चंद्रतल से एक सौ ग्यारह किलो चट्टान लेकर पृथ्वी पर उतरे। 5 दिसम्बर, 1972 को 'अपोलो-17' के स्मिट और सरनान दो यात्री 75 घंटे तक चाँद की दुनिया में सैर कर सकुशल लौट आये। यह यात्रा इस सदी की अमेरिका की ओर से संभवतः अंतिम यात्रा होगी।

रूस ने चाँद के अलावा शक्रग्रह पर भी अपना उपग्रह छोड़ा। 16 मई, 1969 ई0 में रूसी यान शक्रग्रह पर उतरा। इससे प्राप्त सूचनाओं के अनुसार मनुष्य का शक्रग्रह पर निवास करना संभव नहीं है। इसी क्रम में अमेरिका ने मंगलग्रह की ओर 20 अगस्त, 1975 को वाइकिंग-1 यान भेजा, जिसने सूचित किया कि मंगल पर जीवन का कोई संकेत नहीं। 4 सितम्बर, 1976 को भेजे गए वाइकिंग-2 ने भी इसी निष्कर्ष की पुष्टि की।

अब हमें अन्न की समस्या से विचलित होकर परिवार-नियोजन नहीं करना पड़गा। अब हम अन्तरिक्षशटल में ठाट से बैठकर अन्तरिक्ष-स्टेशनों पर चाय-कॉफी पीते हए चन्द्रलोक पहुँचने की आशा सँजो रहे हैं। वहाँ 25-30 किलोमीटर रफ्तार से चलनेवाली कारों में बैठकर विहार करेंगे। द्वेष-द्वंद्व, कलह-कोलाहल की अवनि को तजकर हम नयनाभिराम नक्षत्रलोक के निवासी बनेंगे।