बैलगाड़ी 
Belgadi 

मैं बैलगाडी हैं। बिलकुल सीधी-सादी। मेरा निर्माण चित्तरंजन, वाल्तेयर या बंगलोर के विशाल कारखाने में नहीं हुआ । मेरा विधाता तो गाँव का साधारण अनपढ़ बढ़ई है। उसके औजार रूखानी और बसूला हैं। सामान हैं- काठ, बाँस और थोड़ी-सी कीलें या काँटी। दो पहियेवाली मैं जब दो बैलों से खींची जाती हैं, तो मेरी मस्ती का क्या कहना !

मेरे रूप में आकर्षण भले न हो, पर मैं राजकुमारी की तरह इठलाती, बल खाती मस्त चाल से चलती हूँ। मैं मोटर या रेलगाड़ी की तरह हॉफती भागती नहीं। उस भागदौड़ में आप क्या देखेंगे, क्या पायेंगे? कभी नीले आकाश की गोद में चाँद चाँदनी की चाँदी लुटाता है, कभी तारों की महफिल में संगीत की तानें छिड़ती हैं, कभी ऊषा के आँगन में सूरज लाल किरणों की टोपी पहने निकलता है, कभी सावनी समां में बादलों की धड़दौड़ होती है, कभी कार में अबरख-सी चमचम नदियाँ गीत गाती हैं; किन्तु यदि आपने मुझसे मित्रता नहीं की, तो इन सबका आनन्द उठा नहीं सकते। गतिशीलता में, त्वरा में, अन्धाधुन्ध भागदौड़ में जीवन का भोग कहाँ। और, यदि भोग नहीं, तो फिर रस कहाँ !! आनन्द कहाँ !!!

आप मोटर पर चलें, रेलगाड़ी पर चलें, हर वक्त आपकी जान जोखिम में है वायुयान पर चलें, तो कफन पहले ही खरीदकर रख लें। किन्तु, ज्योंही आप मेरी शरण में आ गये, मैं गीता के श्रीकृष्ण की भाषा में कहूँगी, "सोच मत करो। मेरे साथ चलने में किसी प्रकार का खतरा नहीं, किसी तरह की परेशानी नहीं।" आप मेरे साथ चलें और आपके प्राण मृत्युभय से काँपते रहें, ऐसा नहीं हो सकता।

यह सत्य है कि मुझसे लोग मेरे जनम का जमाना जोड़कर दूसरी चीजों को दसते हैं, "फलाँ वस्तु बैलगाड़ी के जमाने की है।" यह भी सत्य है कि 'बैलगाड़ी की रफ्तार' आज की रफ्तार के लिए बदनामी की बात मानी जाती है। मगर यह मानने-कहनेवाले अपने घर बच्चे और बूढ़े की रफ्तार की भी हँसी उड़ाते होंगे। चाहे कितनी रफ्तार पकड़ो, चाहे कितने हवाई घोड़े दौड़ाओ, मगर क्या खेत से बोझों की दुलाई या हाटों-गोलों में माल-लदाई मेरी ताकत के मुकाबले कोई कर सकोगे? मैं इस तेज-तर्रारी का चूहे-जैसा दम जानती हूँ, इसीलिए जैसी तब थी, वैसी ही अब भी नगन चली जाती हूँ-चर-मर,चर्र-मरै !

मेरा गाड़ीवान भी कम अल्हड़ जीव नहीं होता। सर पर पगड़ी, हाथ में छोटी-सी छड़ी लिये इस प्रकार पुचकार-पुचकारकर वह अपने बैलों से मुझे चलाता है कि आप उसकी मस्त उस्तादी पर मुग्ध हो जायेंगे। उसने उपाधियों की व्याधियाँ नहीं पाली हैं, उसने चालन का लम्बा प्रशिक्षण भी नहीं लिया है, फिर भी वह चालन-संहिता से पूर्णतः परिचित है।

मैं भारतवर्ष की कृषि-संस्कृति का प्रतीक हैं; उसकी शान्ति, सुरक्षा और स्थिरता की पालिका हूँ और इसपर मुझे नाज है, घमंड है।