हरिहरक्षेत्र का मेला 
Harihar kshetra ka Mela

विश्वप्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र मेले को कौन नहीं जानता ? अन्य क्षेत्रों में भले ही हमारे राज्य को संसार में सर्वप्रथम होने का गौरव न मिला हो, किन्तु हमारे यहाँ संसार का सबसे बड़ा मेला लगता है, इसका गौरव तो हमें प्राप्त है ही।

यह मेला उत्तर-पूर्व रेलवे के सोनपुर स्टेशन से- जो अपने प्लेटफार्म के लिए विश्वविख्यात है- पूरब लगता है। सगरपुत्रों का उद्धार करनेवाली गंगा, गज-पाह की कथा सुनानेवाली गंडकी तथा देवी सरस्वती के क्रीडास्थल शोणभद्र के संगमस्थल पर बसा यह परमपावन तीर्थस्थल है। कार्तिक-पूर्णिमा के दिन संगमनान कर हरिहरनाथ के मन्दिर में जल चढ़ाने के लिए अपार भीड़ उमड़ती है। किन्तु यहाँ लाखों लोग केवल जल चढ़ाने नहीं आते, वरन् मेले का आनन्द लूटने आते हैं।

हरिहरक्षेत्र का मेला बहुत बड़ा पशु-मेला है। कुछ वर्ष पहले गाय, बैल, घार और हाथी इसके प्रमुख आकर्षण थे। किन्तु जबसे जमींदारी गयी, शहरी सभ्यता द्रुतगामिनी मोटरगाड़ी आयी, हाथी के प्रति उदासी छा गयी। इस त्वरा के युग मन्दगामी और व्ययसाध्य गजराज उपेक्षित हो गये। जानवरों में छोटे-छोट जान आते हैं; जैसे-बकरियाँ, कुत्ते आदि।

मेले के समय करीब तीन मील घेरे की सुनसान भूमि गुलजार हो उठती हो उठती है। जहाँ शायद एक-दो दीये टिमटिमाते हों, वहाँ बिजली की चाँदनी छिटक उठती है। जहाँ खोजने-ढूँढने पर कभी एक-दो भूले-भटके बटोही मिल पाते हों, वहाँ आदमियों की बाढ़ आ जाती है। जहाँ पेड़ों के झुरमुटों में कहीं-कहीं चिड़ियों की टी-टी-टुट-टुट सनाई पड़ती हो, वहाँ लाउड-स्पीकरों की अट्टध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं। लगता है कि देहाती वेश में कलकते की चौरंगी या बम्बई की चौपाटी आ गयी हो।

कहीं मिठाइयों की सजी-धजी दूकानें हैं, तो कहीं कपड़ों की। फैशन की रंग-बिरंगी चीजें दर्शकों के झुंडों को अपनी ओर खींचती हैं। कहीं सिनेमा हो रहा है, तो कहीं सरकस। कहीं यमपुरी नाटक है, तो कहीं बंगाल का जादू ! राज्य के कोने-कोने से विशेष रेलगाड़ियों और बसों पर आदमी लदे आ रहे हैं और लगता है कि साग राज्य यहीं सिमट जाएगा। मेले में जिधर देखिए, उधर रंगीनी-ही-रंगीनी नजर आता है। लोग धक्के-पर-धक्के दिये जा रहे हैं, धक्के-पर-धक्के खाये जा रहे हैं। पाकिटमारों की बन आती है। यदि आदमी सावधान न रहे, तो क्षण में ही जेब कट जाय।

वैसे, मेले अन्य जगहों में भी लगते हैं, किन्तु यह मेला सब मेलों में निराला है। अन्य मेलों को मनुष्य सिनेमा के गीत की तरह भले ही भूल जाय, किन्तु जिसने हरिहरक्षेत्र-मेले को एक बार देखा, वह आजीवन इसे बिसर नहीं पाएगा और मन-ही-मन गुनगुनायेगा

....अफसोस, हम न होंगे। 

ये जिन्दगी के मेले…….!