साइकिल के लाभ 
Cycle ke Labh


जब आप अबोध बालक थे, तब मैंने आपका मनोरंजन किया था अब जब आप बड़े हो गये तब मैं आपकी उपयोगिता बन गयी। दो पहियोवाली मुइ चकमक सवारी पर सवार होकर जब आप घंटी टुनटुनाते निकलते हैं, तब आपकी शान का क्या कहना ! जिसके पास मैं नहीं होती, वे आप-जैसे सवार की ओर ललचायी निगाहों से देखते रह जाते हैं और आप है कि पंछी की तरह फुर्र से आँखों से ओझल हो जाते है।

अन्य तेज सवारियाँ पूँजीवादी मनोवृत्ति की देन हैं, तो मैं हूँ पूर्ण समाजवादी, जनवादी। बल्कि मैं अपनी प्रगति आप करो' के नाते गाँधीवादी तक हूँ। रेलगाड़ी, बस, हवाई जहाज, जलयान इत्यादि में बहुत अधिक पूँजी की जरूरत है। इन्हें बनाने-चलाने के लिए बहुत बड़ी भीड़ जमा करने, अथाह पूँजी और लश्कर बटोरने की जरूरत है, किन्तु मेरे लिए थोड़े-से लोग और रुपये! बिना किसी की प्रतीक्षा किये, बिना कर्मचारियों का हजम जुटाये, बिना अधिक पूँजी व्ययित किये आप मस्ती से मेरे जरिये सैर-सपाटा कर सकते हैं। मैं मोटर, बस, टैक्सी की तरह माल-मुसाफिर ढोकर किसी की कमाई का साधन नहीं हैं, बल्कि अपने चालक की व्यक्तिगत उपयोगिता का वैसा ही साधन हूँ जैसे किसी की आँख का चश्मा या एलार्म-घड़ी। मैं मजदूरों को भत्ते पर मिल जाती हैं और इसीलिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉक्टर लोहिया आदि इस देश के और संसार के समझदार नेता मुझपर किसी प्रकार का टैक्स लगाने के विरोधी रहे। रेलगाड़ी, ट्रामगाड़ी के लिए मार्ग का निर्माण करना पड़ता है, उनके लिए चालकों को प्रशिक्षित करना पड़ता है, किन्तु मेरे लिए न मार्ग-निर्माण, न कोई खास प्रशिक्षण ! आप अपने बड़े भाई से दस मिनट का आग्रह कीजिए, आप स्वयं मेरे चालन में पारंगत हो जायेंगे, पूरे उस्ताद ! फिर कोस-दो-कोस की बात कौन कहे, आप चाहें तो मुझपर सवार होकर सारे संसार की सैर कर सकते हैं।

हवाई जहाज बड़ी तेज सवारी है। किन्तु उसपर उड़ने से धरती से तो नाता छूट ही जाता है, साथ-ही-साथ एक पाँव हर वक्त कब्र में ही लटका रहता है। उसपर उड़ने से मनुष्य प्रेम-रस चखता है या नहीं, मैं नहीं जानती; किन्तु ऊपर से गिरने से चकनाचूर तो हो ही जाता है, इसमें सन्देह नहीं। मेरे सवार के सर पर कभी भी वैसे खौफनाक खतरे की तलवार नहीं लटकती रहती। मैं तो हर घड़ी 'सभी सुखी हों, सभी नीरोग हों!' का राग अलापती रहती हूँ।

अभी आपके आगे से चमचमाती लाखों वाली 'रोल्सरॉयस' निकल गयी। आपके बदन पर धूल का एक जबर्दस्त झोंका आया, किन्तु उसकी सारी हेकड़ी तब गायब हो जाती है, जब आगे थोड़ा-सा बरसाती पानी मिलता है। राह चलती मेम साहब का बेशकीमती बाना कीचड़ से लथपथ हो जाता है। दस कदम पर वह गाड़ी चुडैल-सी खड़ी होती है। मालिक ड्राइवर पर बरसता है, “अन्धे कहीं के। देखा नहीं? तुम्हें इस रास्ते में गाड़ी चलानी ही नहीं चाहिए थी।" और आप है कि धूल झाड़ते, मुस्कुराते, साहब पर कनखियाँ मारते, मुझपर पैडिल मार आगे निकल जाते है, बगल की पगडंडी से।

बसगाड़ी अभी तक आपकी गति पर फब्तियाँ कसती हई हरहराती चली जा रही थी। रास्ते में रेलवे गुमटी बन्द और बेचारी की सिट्टीपिट्टी गम। आप हैं कि मुझ कन्धे पर उठाया और बगल के रास्ते से निकल पड़े। और, वह बैलगाड़ी! बेचार मस्तानी चाल से जा रही है, जैसे उसके सवार को जीवन में कोई काम नहीं दुनिया इतनी तेज गति से भागी जा रही है और ये जनाब अभी पाषाणयुग में विचरण कर रहे हैं।

अतः गतिशीलता और आपत्तिशून्यता-दोनों का यदि कहीं शुभसंयोग होगा, तो मेरे दो चक आपको दो गोलाडों को रौंदने की गति देंगे, यदि आपको मुझपर भरोसा हो। मेरा नाम साइकिल अर्थात् चक्र है; केवल बैकुंठविहारी जनार्दन का नहीं, वरन् धरणी-निवासी प्रत्येक जन का।