एफ. एम. रेडियो
FM Radio
छोटे-से निर्जीव यंत्र, किन्तु वातावरण को सजीव बना देनेवाले, जादू के पिटारे का नाम है,रेडियो। नगर-नगर, ग्राम-ग्राम का श्रृंगार करनेवाली इस सुलभ वस्तु की जितनी भी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है।
पदार्थ का कभी विनाश नहीं होता-विज्ञान के इसी मूल-मंत्र पर रेडियो का आविष्कार हुआ। हम जो कुछ बोलते हैं, वह ध्वनितरंग बनकर वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है। रेडियो इन्हीं ध्वनियों को पकड़कर हमारे समक्ष उपस्थित करता है। तूफान में तार टूट जाने के कारण तार से समाचार भेजने में काफी कठिनाई होती है । अतः बिना तार के भी तार भेजा जा सके, इसके लिए यत्न प्रारम्भ हुआ। इस क्षेत्र में हमारे वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने अनेक परीक्षण किये, किन्तु सफलता का सेहरा इटली के वैज्ञानिक मार्कोनी के सर बैंधा। मार्कोनी ने इन्हीं प्रयोगों एवं परीक्षणों के आधार पर 1921 ई0 में रेडियो का आविष्कार किया।
रेडियो ने संसार को एक सूत्र में बाँध दिया है। यह 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का सही अर्थ में उद्घोषक है। आज पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह इन्सैट-1 बी के स्थिर होने का समाचार सुनकर हम प्रफुल्लित हो उठते हैं। हमारी वैज्ञानिक सम्भावनाओं के अंधेरे कोनों में एक ज्योति चमक उठती है। पाकिस्तान में जन-आन्दोलन के विरुद्ध फौजी शासन की दमनात्मक कार्रवाइयों की जानकारी पाकर खन खौल उठता है तो दूसरे ही क्षण श्रीमती महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की खबर से मन में जैसे वसंत की हरियाली मिल जाती है। ज्योंही हम सुनते हैं कि भारतीय क्रिकेट दल ने लंदन में विश्वकप जीत लिया है, हम खुशियों के मारे नाचने लग जाते हैं। संसार के सुदूर कोने में कोई मामूली-सी बात घटती है तो रेडियो द्वारा उसकी जानकारी पाते हैं, प्रभावित होते हैं।
रेडियो से हम केवल रंग-बिरंगे समाचार ही नहीं सुनते, मनचाहे संगीत का आनन्द भी लेते हैं। शास्त्रीय संगीत हो या सुगम संगीत, लोकगीत हो या चलचित्र-संगीत, रेडियो का डायल घुमायें और क्षणभर में सब हाजिर। रेडियो ने 'ग्रामोफोन' की उपयोगिता कम कर दी है। नाटक के लिए अब अधिक दौड़ने की जरूरत नहीं, सिनेमा के टिकट के लिए टिकट-खिड़की की भीड़ में कमीज नुचवाने की आवश्यकता नहीं, बस घर बैठे 'नाटक' सुन सकते हैं, सिनेमा के 'साउण्ड ट्रैक' सुन सकते हैं। यदि आप शिक्षा प्राप्त करना चाह रहे हों, संसार के सभी विषयों की अल्पावधि में जानकारी प्राप्त करना चाहते हों, तो रेडियो के द्वारा यह भी सम्भव है। काव्य, इतिहास, राजनीति, दर्शन, विज्ञान-शायद ही कोई विषय हो जिसपर रेडियो में भाषण, परिसंवाद-गोष्ठियों का आयोजन न होता हो। स्कूली विद्यार्थियों के लिए तथा विश्वविद्यालयीय छात्रों के लिए इसमें अलग-अलग कार्यक्रम रहते हैं। बच्चे यदि 'बाल-मंडली' और 'घरौंदे' से मन बहलाते हैं, नारियाँ यदि 'नारी-जगत्' और 'आँगन' से खुश होती हैं, किसान यदि 'चौपाल' से सूचनाएँ प्राप्त करते हैं, तो साहित्यिक 'पराग' से आनन्द-विह्वल होते हैं। इस तरह, रेडियो में भिन्न-भिन्न वय और रुचि के अनुसार कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं।
विज्ञान के बारे में कहा जाता है कि इसने मानवता के संहार के अधिक साधन प्रस्तुत किये हैं, किन्तु इसने ऐसे भी कुछ पदार्थ आविष्कृत किये है, जो अत्यन्त उपयोगी तथा आपत्तिरहित हैं। उनमें रेडियो का नाम सर्वप्रथम लिया जा सकता है।
रेडियो विज्ञान का अभिशाप नहीं, वरदान है। यह संसार में शवता नहीं, शिवता का सूत्रधार है। यह मानवता का संहारक नहीं, भंगारकर्ता है। यह मानव-मस्तिष्क का तामस नहीं, सात्त्विक चमत्कार है।
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