फुटपाथी होटल 
Footpathi Hotel

होटल कहते ही बहुतों के मानसपटल पर महाकाय होटलों की छवि घिर आती है, लेकिन फटपाथी होटल का रूप-रंग होटल की परम्परागत विशेषताओं से सर्वथा अलग होता है। भारत के किसी भी शहर में, किसी भी कस्बे में अब फुटपाथी होटलो को खोज लेना बहुत कठिन नहीं रह गया है। आप किसी सडक से गजर रहे हों और आपके ठीक बगल में चूल्हे पर रोटियां सेंकी जा रही हो, सब्जी और पानीदार दाल में रोटियाँ डबो-डुबोकर कोई सर्वहारा मनोयोगपूर्वक भोग लगा रहा हो तो आप फटपाथी होटल के करीब हैं। यही वे होटल हैं जहाँ रिवशेवाले. खोमचेवाले. घम-घमकर फटकर व्यवसाय करनेवाले और ठेला खींचनेवाले मजदर अपने पेट की आग बझाते हैं। पाँच-सितारा होटलों में एक चाय की जितनी कीमत है, उतनी रकम में फुटपाथी होटल एक-दो दिनों का भोजन करा सकते हैं।

फुटपाथी होटल का ग्राहकवर्ग विशिष्ट होता है। यहाँ वे ही निम्नवर्गीय लोग रोटी और चावल की तलाश में आते हैं, जिन्हें अपनी दिनभर की कमाई से कुछ पैसे बचाते हुए कम-से-कम में पेट की ज्वाला शान्त करनी है। ऐसे गरीबों के लिए फुटपाथी होटलों में भोजन का उत्तुम प्रबन्ध है। इन होटलों की व्यवस्था जिन विशेष अर्थवर्ग के लोगों को संतुष्ट करती है, उनके लिए फुटपाथी होटल किसी पाँच-सितारा होटल से कम नहीं। आप किसी ठेला-मजदूर से पूछे, वह सूचित करेगा कि शहर की किस सड़क के किस फुटपाथी होटल पर रोटी और दाल के साथ अच्छी सब्जी मिलती है अथवा किस फुटपाथी होटल में सत्तू और प्याज के साथ अचार का भी प्रबन्ध है। इन फूटपाथी होटलों का मीन अत्यन्त संक्षिप्त होता है। चावल-दाल-सब्जी, राटा-दाल-सब्जी, सत्त-नमक-मिर्च-प्याज-इसी मीनू पर इन होटलों के ग्राहक टूटते हैं।

बहुत बार तो छिपे तौर पर ऐसे लोग भी इन फुटपाथी होटलों का सेवन करते हा पाये गये हैं, जो दिन के उजाले में इन होटलों के पास नहीं फटकते और शाम दलने पर लोगों की नजर बचाकर यहाँ पहुँच जाते हैं। छोटे शहरों में तो कचहरियों के आसपास मौजूद सारे फुटपाथी होटल मुवक्किलों और दलालों से भरे रहते हैं। इन होटलों में पहुंचने में जितनी देर लगे, खाकर निकलने में विलम्ब नहीं होता। होटलवाले अपने ग्राहकों को जल्दी से खिलाकर विदा करना चाहते हैं, क्योंकि उनके पास घोर स्थानाभाव है और अनेक ग्राहकों को तो सड़क पर खड़े-खड़े पेट-पूजा करनी पड़ती है। फुटपाथी होटलों में जिस खाद्य-सामग्री का उपयोग किया जाता है, वह हमेशा ताजा ही नहीं होती। इन होटलों के ग्राहकों को धीरे-धीरे परसों की दाल, कल की सब्जी और सुबह को रोटी की आदत पड़ जाती है। ये फुटपाथी होटल सिद्ध करते हैं कि हिन्दुस्तान को एक अच्छा कैमरा अथवा रेडियो बनाना भले न आया हो, लेकिन हमारे ऐसे कलाकार मौजूद हैं जो कड़े को खाद्य-सामग्री के रूप में पेश कर सकते हैं। इन होटलों की खाद्य-सम्पदा दिनभर सड़क की गर्द, चिलचिलाती धूप, हहराती बरसात और मक्खियों का सामना करती है और इतने संघर्ष के बावजूद अपने ग्राहकों को संतोष देती है। निश्चय ही फुटपाथी होटल इस देश की गरीबी और बिगड़ी हुई खाद्य-व्यवस्था के सजीव प्रमाण है।

यदि आपको भारत की निर्धनता से वास्तविक साक्षात्कार करना है, तो किसी फुटपाथी होटल के सामने पन्द्रह मिनट खड़े हो जाइये। इस छोटी-सी अवधि में निम्नवर्गीय भारतीय जनता के अनेक प्रतिनिधि अपनी क्षुधा-तृप्ति के लिए फुटपाथी होटलों के घटियातुम सामानों पर टूटते हुए नजर आयेंगे। ये होटल हमारी चरमराती हुई अर्थव्यवस्था के जीवंत एलबम हैं, न मालूम कितने गरीबों की दिनभर की साधना को संतुष्ट करने के साधन हैं। फुटपाथी होटल फुटपाथी संस्कृति के स्मारक हैं और एक विशाल जन-समुदाय की आकांक्षाओं को सपनों की दुनिया में ले जानेवाले मार्गदर्शक भी।