मोमबत्ती की आत्मकथा 
Mombatti ki Atmakatha 


आज जब विद्युत्-प्रदीपों के तीव्र प्रकाश के कारण रात भी दिन बन जाती है, तो मेरी याद आपको न आती हो, यह स्वाभाविक है। आप दुधिया बल्बों से छिटकी आभा में मस्ती काटते रहते हैं, खुशियों का गुब्बारा छोड़ते रहते हैं, किन्तु विद्युत्-देवता जब दगा दे जाते हैं, उस समय सर्वत्र अन्धकार का असुर अपनी डरावनी जिलाएं। खोलने लगता है और बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में अभिशाप की काली छायाएँ मंडराने लगती हैं। फैशनपरस्त लोगों ने आज 'दीया जलाना' छोड़ दिया है, किरासन तेल वाला लालटेन की दुर्गन्ध से किनारा कर लिया है। हर क्षण प्रकाश-पर्व मनानेवालों के लिए एक-दो क्षण का अन्धकार असह्य हो उठता है। उन्हें सब ओर सन्नाटा-ही-सजाटा नजर आता है, उदासी-ही-उदासी दीखती है। आँख होते हुए वे अन्धे की तरह इधर-उधर “टटोलना आरम्भ करते हैं। उनके मन-प्राण बेचैन हो उठते हैं उनके अन्तःकरण में बाइबिल की यह उक्ति 'Let there he light' आवाज देना आरम्भ कर देती है।

हमें प्रकाश चाहिए, हमें प्रकाश चाहिए-यही एकमात्र आकांक्षा मन की सारी तहों में बलवती हो उठती है। जब सब ओर मे उम्मीद का दरवाजा बन्द हो जाता है, उस समय मैं आपकी ओर आ खड़ी होती हैं। आपको प्रकाश चाहिए न । मैं आपकी खुशी के लिए अपने को न्योछावर करने के लिए तैयार हैं। आप लाइटर जलाइए और मेरी शिखा पर लगा दीजिए-मैं जलूँगी, धीमे-धीमे जलूंगी, किन्तु आपके तुमसाच्छन्न जीवन में प्रकाश की किरणें लुटा जाऊँगी। विंसेट मिले ने ठीक ही कहा है-

My candle burns at both ends:

It will not last till night. 

But, ah, my foes, and oh, my friends -

It gives a lovely light. 

अर्थात्,

मेरी मोमबत्ती जलती है दोनों छोर 

शायद यह न चले कुल रात बिताकर भोर 

किन्तु शत्रु ओ शत्रु, मित्र ओ मित्र, सुनो

यह देती है प्यारी-प्यारी ज्योति अथोर । 

शेक्सपियर के मैकबेथ ने घनघोर निराशा में कहा था-"ओ मेरे जीवन की मोमबत्ती, बुझ जा। जिन्दगी कुछ नहीं है। यह केवल लफंगों द्वारा कही गयी कहानी है, जिसमें शोर-शराबा तो बहुत है, किन्तु अर्थवत्ता कुछ नहीं।"

Out, out, brief Candle ! 

Life's but a walking shadow, a poor player 

That struts and frets his hour upon the stage, 

And then is heard no more: it is a tale 

Told by an idiot, full of sound and fury, 

Signifying nothing.-मैकबेथ  

ऐसा प्रला" क्यों? जीवन की कोई मूल्यवत्ता नहीं। ऐसा मानना क्या उचित है? मनुष्य का जीवन भी एक मोमबत्ती बन जाय, तो क्या कहना ! मानव-जीवन दोनों सिरों से जले। यह हो सकता है कि वह बहुत दिनों तक न रहे, किन्तु जब तक रहे, दूसरों को मधुर प्रकाश देता रहे। इसी में उसकी सार्थकता है। जब हर ओर अन्धकार-ही-अन्धकार हो निराशा-ही-निराशा हो, तब यदि किसी की जिन्दगी मोमबत्ती की तरह जलकर आलोक फैलाये, आशा की किरणों का कोष लुटाये, तो इससे बढ़कर मानव-जीवन की सदुपयोगिता और क्या हो सकती है?

मैं भले महान न होऊँ, किन्तु यदि मैं संकट की घड़ियों में आपको कुछ प्रेरित कर सकी, और परमात्मा के पूर्ण प्रकाश की ओर इंगित कर सकी, तो अपने को धन्य मानूँगी।