जहाँ चाह, वहाँ राह 
Jaha Chaha Waha Raha 

बहुत सारे नवयुवकों को कहते सुना है-क्या करें ? कोई रास्ता नहीं सूझता। ऐसा लगता है कि जीवन में आगे बढ़ने के सारे मार्ग अवरुद्ध हो गये हैं। एक विचित्र शून्यता सब ओर छाई हुई है। कोई अपने भाग्य को कोसता है, कोई अपनी दयनीय पारिवारिक स्थिति को दोषी बताता है, तो कोई समाज में फैले भ्रष्टाचार को अपराधी घोषित करता है। लेकिन बात ऐसी नहीं है। विश्व के अनेक महापुरुषों की जीवन-गाथाएँ साक्षी हैं कि एकदम प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय और परिश्रम के बल पर अपनी राह स्वयं बनायी है। यदि मन में सच्ची लगन हो, तो गगन भी झुक जाता है, पर्वत भी शीश झुकाते हैं, कालिमा ज्योत्स्ना बन जाती है और सागर की छाती चीरकर राह निकल आती है। वस्तुतः, चाह वह जादुई मंत्र है, जिसके सहारे अवरोध के सारे तिलस्म टूट जाते हैं। सच्ची चाह रेगिस्तान में भी फूल खिला देती है तथा भीषण झंझावात में भी राह बना देती है।