प्लेटफार्म का दृष्य 
Platform ka Drishya 

न मालूम कितने प्रतीक्षारत लोगों का शरणस्थल कितने गरीबों की जीविका का साधना-स्थल, और कितने कर्मचारियों की दिनचर्या का साक्षी है यह प्लेटफार्म। न मालूम कितने आगुन्तकों का स्वागत करता है यह प्लेटफार्म । किसी महानगर के बडे स्टेशन पर प्लेटफार्म की वास्तविक चहल-पहल देखी जा सकती है। सीदियों से गुजरने के बाद किसी भी बड़े जंक्शन के प्लेटफार्म पर एक साथ अनेक मिश्रित अनुभूतियाँ मन को छूने लगती हैं। अगर सामने से कोई कुली सामान से लदा चला आ रहा है, तो उसके मार्ग में नहीं आना है। बगल से रेलवे डाकसेवा का ठेला गजर रहा है, उससे भी बचना है। प्लेटफार्म पर तुरत-तुरत लगी ट्रेन से उतरकर बहता चला

आ रहा है महामानव-समुद्र जो कहीं आपको भी प्लेटफार्म के बाहर न कर दे, इसका ध्यान भी रखना है। भीड़ का लाभ उठाकर कहीं कोई आपकी जेब न साफ कर दे, इसके लिए भी आपको सचेत रहना है। सचमुच, प्लेटफार्म बहुत सारे अनुभवों का प्रदाता है, न मालूम कितने लोगों का भाग्यविधाता है।

भारत के किसी भी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर टेन की प्रतीक्षा में पलक-पाँवड़े बिछाये बार-बार उचक-उचककर आनेवाली गाड़ियों की ओर झाँकते लोगों को देखने के हम अभ्यासी हो गये हैं। इंतजार अपने-आपमें कष्टदायक है और प्लेटफार्म पर ट्रेन का इन्तजार तो और भी बोरियत-भरा है। आप ट्रेन की विकल प्रतीक्षा में बैठे हैं और हर आधे घंटे के बाद यह घोषणा की जा रही है कि ट्रेन का कहीं कोई अता-पता नहीं है। प्लेटफार्म पर बैठना अनेक अनुभवों से गुजरने का अवसर देता है। यदि आप भाग्यशाली हैं, तभी आपको प्लेटफार्म पर बनी बेंच पर बैठने का अवसर मिल सकता है। चारों ओर फैली हुई भीड़, पसरे हुए सामान, रोते-चिल्लाते बच्चों और शोर मचाते इंजनों के बीच प्लेटफार्म पर बैठना अपने-आपमें एक साधना है। कभी कोई भिखमंगा आकर आपका ध्यान अपने एकाकार पेट और पीठ का आर आकृष्ट करता है, तो कभी मूंगफली बेचनेवाला आपके समय को काटने का बहाना सौंप जाता है। इसी समय यदि कोई ट्रेन प्लेटफार्म पर आ गयी, तो कोलाहल तात्र हो जाता है। 'चाय गर्म', 'बीड़ी-पान-सिगरेट', 'काबुली चना', 'नारियल गड़ी, पूड़ी' जैसी अनगिनत आवाजें एक-दूसरे को काटती हुई कर्ण-कुहरों में भर जाती है। ट्रेन से उतरनेवाले और ट्रेन पर चढ़नेवाले लोगों की हड़बड़ी देखते ही बनती है प्लेटफार्म रात के समय एक अनोखी दशा को प्राप्त होता है। रात घिर साथ-ही-माथ प्रतीक्षारत यात्रियों की आँखें झुकने लगती हैं, प्लेटफार्म पर उनका पसरने लगता है और आधी रात तक तो समूचा प्लेटफार्म एक अस्थायी धर्म बदल जाता है। सुबह बहुत सबेरे जब प्लेटफार्म की सफाई करनेवालों का दल पानी बहाता धमकता है, तब प्लेटफार्म पर पसरे हुए लोगों को कच्ची-पकी नींद से उठकर भागना पड़ता है। लेकिन व्यस्तता और शोरगल का यह माहौल सभी प्लेटफार्मों पर नहीं रहता। जिस तरह मानवों में भाग्यशाली और अभागे लोग है. अमीर और गरीब लोग हैं, उसी तरह प्लटेफार्म भी भाग्यहीन एवं भाग्यशाली होते हैं। बड़े-बड़े स्टेशनों के प्लेटफार्म पर तो गाड़ियों का तांता लगा रहता है, जबकि असंख्य ऐसे स्टेशन हैं जिनके प्लेटफार्म पर चौबीस घंटे में शायद पाँच मिनट की रौनक भी नहीं ठहरती। अपना-अपना प्लेटफार्म होता है, अपना-अपना भाग्य!

प्लेटफार्म यात्रियों के मिलने और बिछुड़ने का केन्द्रीय स्थल है। यह वह स्थान है, जहाँ पहुँचकर जनसंख्या के दबाव और आधुनिक जीवन की व्यस्तता का साकार अनुभव होता है। प्लेटफार्म केवल ट्रेनों के रुकने की जगह ही नहीं, हमारे और आपके परिवेशगत अनुभवों के साक्षात्कार का स्थान भी है। प्लेटफार्म शरणागतवत्सल है और कोलाहल का पर्याय भी, यह अनूठी दिनचर्या का उदाहरण है और विलक्षण अनुभूतियों का समवाय भी।