महँगाई की समस्या 
Mehangai ki Samasya 

Essay # 1

एक नयी सुरसा का परिचय हमसे हुआ है, जिसका नाम है महँगाई। हर वस्तु की कीमत आज आसमान छ रही है। कीमतो मे वृद्धि का सिलसिला बहुत पुराना है और आज गुजरे जमाने की कीमतों की चर्चा भी सुखद आह में परिणत हो गयी है। आज की स्थिति तो यह है कि हर तरफ कटौती करने के बावजद महँगाई का विषधर इसने से नहीं चूकता । क्या देश, क्या विदेश सभी जगह मूल्य-वृद्धि की समस्या मैंह बाये खड़ी है। पर, हमारे देश में इस समस्या का रूप अतिशय भयानक है। महंगाई के कारण बढ़ती हुई कीमतों ने यहाँ की जनता को बुरी तरह झकझोर दिया है। कीमतों का प्रभाव कितना प्रलयंकारी है, इसे ही जगदीश गुप्त ने अपनी इन पंक्तियों में व्यक्त किया है-

कौन खाई है, 

कि.जिसको पाटती हैं कीमतें 

उम्र को तेजाब बनकर 

चाटती हैं कीमतें 

आदमी को 

पेट का चूहा बनाकर रात-दिन 

नोंचती हैं, कोंचती हैं

काटती हैं कीमतें। 

मुख्य प्रश्न यह है कि ऊँची उठती हुई कीमतों और बढ़ती हुई महँगाई का कारण क्या है ? वह कौन-सी जहरीली हवा है जिसके थपेड़े में पड़कर अर्थशास्त्र के सारे नियम विफल हो गये हैं। वे कौन-सी विलक्षण परिस्थितियाँ हैं, जिनके कारण बढ़ी हुई कीमतों के अजगर ने समूचे अर्थतंत्र को लपेट रखा है और महँगाई का तांडव शस्यश्यामला भूमि पर हो रहा है। चारों ओर मची हुई लूट और चरम सीमा तक बढ़ी हुई कीमतों की वृद्धि के मूल में वस्तुओं की आपूर्ति में कमी का होना है। जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, इसलिए वस्तुओं की माँग में वृद्धि होना स्वाभाविक है। मांग के अनुपात में आपूर्ति कम है, क्योंकि वस्तुओं का उत्पादन कम हो रहा है। मजदूर-संकट, यूनियनबाजी, विद्युत्-संकट के कारण उत्पादन-कार्य बाधित है। दूसरी ओर, सरकार पंचवर्षीय योजनाओं में विकास के कार्यों को शिथिल नहीं होने देना चाहती। बेकारी-निवारण तथा समाज कल्याण के नाम पर करोड़ों रुपयों की योजनाएँ बन रही हैं। कर्मचारियों के वेतनों में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है, कागजी मुद्रा का अधिक प्रचलन हो गया है। इन कारणों से मुद्रास्फीति निरन्तर बढ़ती जा रही है। तीसरी ओर, व्यापारियों की गलत दूषित नीति के कारण जमाखोरी, कालाबाजारी की प्रवृत्ति विशेष रूप से बढ़ रही है। वस्तुओं की वितरण-प्रणाली भी दोषमुक्त नहीं है। फिर, हर क्षेत्र में फैला हुआ भ्रष्टाचार भी महँगाई का एक प्रमुख कारण है।

कीमतों की वृद्धि एक अभिशाप है। देश को हर हालत में इससे मुक्त करना अनिवार्य है। इसके लिए उत्पादन में वृद्धि करना चाहिए। उत्पादन कार्य हर हालत में चलता रहे-यही सब लोगों का प्रयास होना चाहिए। व्यापारियों को काला बाजार का धंधा बंद करना चाहिए। इस कार्य में हर नागरिक का सहयोग अपेक्षित है। फिर, सभी क्षेत्रों में फैले भ्रष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद के विरुद्ध जेहाद बोलना अनिवार्य ह। यदि सत्तर करोड़ भारतवासी महँगाई को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध हो जायें, नाद मजदूर हड़तालों का रास्ता छोड़कर उत्पादन बढ़ायें, यदि पूँजीपति उचित से अधिक साका लेने को पाप समझें, यदि सभी कर्मचारी ठीक समय पर काम करना शुरू कर दें, यदि 'परिश्रम के बिना खाना हराम है' यह हमारा मूलमंत्र बन जाय, तो हम कमातील महँगाई का डटकर मुकाबला कर सकते हैं।


महँगाई: एक समस्या 
Mehangai Ek Samasya


Essay # 2

महँगाई आज हर किसी मे मुख के चर्चा का विषय बन चुका है। आज जिधर जाइए, जहाँ जाइए एक ही रोना सुनाई देगा 'हाय महँगाई हाय महँगाई। यह सुरसा के मुँह की  तरह बढ़ती जा रही है। सामान्य जन को दो समय की रोटी के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है फिर भी वह उसे नहीं मिल पाती। दालों-सब्जियों की कीमत आसमान  को छू रही है। वास्तव में इस महँगाई ने जन-साधरण की कमर तोड़ दी है। भारत जैसे देश के लिए यह चिंता का विषय बनता जा रहा है। हमारे देश में इस समस्या के अनेक कारण हैं। सबसे बड़ा कारण जनसंख्या वृद्धि है। इसके सामने सभी उत्पादन बौने दिखाई देते हैं। देश की रक्षा के लिए रक्षा साधनों पर बढ़ता खर्चा भी एक कारण है। 


देश में फैला हुआ भ्रष्टाचार तथा घाटे के बजट ने महँगाई को और बढ़ाया है। पेट्रोल के बढ़े दाम व वस्तुओं के विज्ञापन पर बढ़ता खर्च भी वस्तुओं की कीमत में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी कर रहा है। जमाखोरी व मुनाफाखोरी भी महँगाई का साथ देती है। इसका समाधान कैसे हो? हमें सच्चे मन से इसका हल निकालना होगा। सबसे पहले बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगे। परिवार नियोजन के नियमों का कठोरता से पालन हो। सरकार को जमाखोरों व मुनाफाखोरों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करनी होगी। 


विज्ञापन की अधिकतम सीमा निश्चित करनी होगी। पेट्रोल के व्यर्थ प्रयोग को रोकना होगा। आँख बंद करके पश्चिम का अनुकरण करना बंद करना होगा। कर-प्रणाली सरल बना कर काला धन निकालने का प्रयास करना होगा और कठोर नियम बना कर काले धन को देश के बाहर जाने से रोकना होगा। वास्तव में यह एक राष्ट्रीय समस्या है। 


इसके लिए प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी इच्छाओं व अनावश्यक खर्चों पर अकुंश लगाए। स्वदेशी वस्तुओं को अपनाए। तभी देश में महँगाई का भस्मासुर भस्म होगा।